बुधवार, मार्च 21

नमस्कार


प्रिय ब्लॉगर साथियों, मैं कुछ दिनों के लिये यात्रा पर जा रही हूँ, अतः आपके ब्लॉग पर मैं नियमित उपस्थित नहीं हो सकूंगी, मेरी भी नियमित पोस्ट संभव नहीं हो सकेगी, मेरा अनुरोध है कि आप मेरी पुरानी पोस्ट जो आपकी नजर में नहीं आयी हों, उन्हें पढ़ें, अनंत आपके जीवन में जगमगाए इसी शुभकामना के साथ...
 आपकी अपनी ब्लॉगर मित्र अनिता 

मंगलवार, मार्च 20

जाग गया जो अपने भीतर



जाग गया जो अपने भीतर


भक्ति का मतलब है सीधा
मै तेरा हूँ, तू है मेरा,
जितना, जैसे तू चाहेगा
उतना ही मुझसे पायेगा !

जग में जिसको प्रेम जानते
संदेहों से घिरा ही रहता,
घटता बढ़ता देख वक्त वह
कहाँ एक सा सदा वह रहता !

लेकिन उसने वचन दिया है
बिना शर्त वही अपनाता,
जाग गया जो अपने भीतर
उसी एक से वह मिल जाता !  

वह है जैसा, वैसे हैं हम
फिर कैसी खुशी और कैसा गम,
जैसे वह अलिप्त ही रहता
न होने का देता है भ्रम !




रविवार, मार्च 18

जहाँ शून्य ही व्याप रहा था


जहाँ शून्य ही व्याप रहा था

एक खोज कबसे चलती है,
जिस पर जीवन वार दिया था
आपाधापी अब खलती है !

जन्मों से यह खेल चल रहा,
एक त्रिकोण सदा बन जाता
अंतर्मन को यूँही छल रहा !

पुरुषार्थ भी व्यर्थ हो गए,
कब तक बंधन रहे अटूट
जहाँ प्रेम के अर्थ खो गए !

शब्दों का आकर्षण त्यागा,
कब तक कैद रहेगा उनमें
आखिर मन का पंछी जागा !

जंजीरें स्वयं ही गढ़ लीं थीं,
जहाँ शून्य ही व्याप रहा था
वहाँ व्यथाएं क्यों पढ़ लीं थीं !

खुद को ही लिखते पढ़ते हैं,
दुनिया भर के शास्त्र बांच लें
नित निज के नियम गढ़ते है !


शुक्रवार, मार्च 16

है बेबूझ बात यह दिल की


है बेबूझ बात यह दिल की

मदिर चाँदनी बिखरी जैसे
गुनगुन कोई गीत सुनाता,
तेरी यादों में मन खोया
काल का पंछी भी थम जाता !

लहरें उठतीं गिरतीं जैसे
बहे ऊर्जा का इक दरिया,
भाव मधुर वंशी बन गूंजे
मन चादर में पड़े लहरिया !

थिर कदमों में नृत्य समाये
मूक हुआ कोई हँसता जाये,
तृषित अधर मन इक प्याला हो
एक हाथ कोई ताल बजाए !

है बेबूझ बात यह दिल की
एक अनोखी सी महफिल की,
आँखों आँखों में ही घटती
तय होती दूरी मंजिल की !

बुधवार, मार्च 14

जादू प्रेम का


जादू प्रेम का

उसका जाना एक नेमत बन गया
 याद का बादल बरसा
हुलसा तन, मन भीग गया !

बेरुखी उसकी बनी इनायत ऐसे
खुद को परखा
दिखे ऐब भीतर कैसे - कैसे !

उससे दूरी मिलन का सबब बनी
धुलीं आँखें अश्रुओं से
भीतर रोशनी छनी !

 उसकी बातें चुभीं जब तीर सी
झाँका नयन में उसके
तस्वीर अपनी दिखी !

मंगलवार, मार्च 13

मुक्ति के सँग बंधन भी है


मुक्ति के सँग बंधन भी है


सोते-सोते युग बीते हैं
अब तो जाग जरा मन मेरे,
चौराहे पर आ पहुँचा है
ठिठके कदम भला क्यों तेरे !

जाने कब यह नैन मुंदेगें
उससे पूर्व नहीं खिलना है ?
सुरभि लिये क्या जाना जग से
बन सूरज जग से मिलना है !

कुदरत तेरी ओर निहारे
इक संकल्प जगा कर देख,
मंजिल राह तका करती है
खींच क्षितिज तक रक्तिम रेख !  

 तज दे तंद्रा सुबह सामने
इक उड़ान भर छूले अम्बर,
दुःख चादर को झट उतार दे
सुख समीर बह रही झूमकर !

अलस बिछौना कब तक भाए
फूलों के सँग कंटक भी हैं,
घटे नहीं जागरण जब तक
मुक्ति के सँग बंधन भी है !

शनिवार, मार्च 10

जैसे कोई...




जैसे कोई...

जैसे कोई बच्चा आँखें बंद कर ले
फिर कहे, “माँ तुम कहाँ चली गयीं ?”
तो माँ हँस देती है

जैसे कोई बड़ा
नाक पर चश्मा चढ़ाये हो
और खोजता हो उसी को
तो साथी हँस देता है

वैसे ही हम उसी में रहते हैं
और पूछते हैं तुम कहाँ हो
तो वह भी हँस देता होगा खिलखिलाकर
और तभी बरस उठती हैं बदलियाँ
झलक दिखाती हैं बिजलियाँ
महक उठती हैं फूलों की घाटियाँ
दौड़ पड़ती हैं सागर की तरफ
बलखाती नदियाँ
चमचमा उठती हैं
हिमखंडों से भरी उन्नत चोटियाँ......



शुक्रवार, मार्च 9

हम जा कहाँ रहे हैं...


हम जा कहाँ रहे हैं...

कांगो में हुआ भीषण विस्फोट
एक नन्हें बच्चे को दिया अमानवीय दंड
कांप जाता है समाचार पढ़ के मन
ईरान चाहता है बम बनाना
चीन सैन्य शक्ति को बढाना
कहाँ गयी है मानवी बुद्धि
और क्षमता विवेक की
किसके खिलाफ युद्ध छेड़ा है हमने
हम जा कहाँ रहे हैं...

टीवी का स्विच बंद कर देती हूँ
पलट देती हूँ अखबार को उल्टा
पर हत्या और हिंसा की घटनाएँ तो कम नहीं होतीं
पूर्व अधिकारी के यहाँ मिलते हैं करोडों
 दूर के रिश्तेदारों के नाम जब फ़्लैट लिखा जाता है  
तब ठंड में ठिठुर कर मर जाता है
कोई बच्चा, बेघर ठंडी सड़क पर
सर्दियों की रात में.....
जब सेना की साज-सज्जा में धन लुटाया जा रहा है
गरीब, बेरोजगार किसान आत्महत्या करने पर विवश हैं
क्यों है इतनी विषमता
इतना अन्याय
समझ नहीं पाता मन
किशोरों के हाथों तक पहुँच गये हैं हथियार
और गिलास जिसमें भरा है जहर नशे का
जो हाथ मंदिर की घंटियाँ बजाने को उठा करते थे
आज भटक गए हैं...
परिवर्तन की यह आंधी कहाँ ले जाएगी
हमें... हम जा कहाँ रहे हैं...

हर संवेदन शील मन की यह चिंता है
और बेबुनियाद तो नहीं है न यह चिंता..?


गुरुवार, मार्च 8

महिला दिवस पर शुभकामनायें


महिला आरक्षण विधेयक - आजादी की ओर बढ़ते कदम

प्राचीन भारत का इतिहास नारी की गौरवमयी गाथाओं से भरा पड़ा है I हमारे पूर्वजों ने सदा नारी की मान-मर्यादा व अधिकारों की रक्षा को महत्व दिया था I उस काल में उन्हें समाज में बराबरी का स्थान प्राप्त था I परिवार में उनका पद प्रतिष्ठापूर्ण था, कोई भी सामाजिक या धार्मिक कृत्य उनकी सम्मति के बिना नहीं हो सकता था, बल्कि रणक्षेत्र में भी वे पति का सहयोग करती थीं I समय बदला, भारत परतंत्र हुआ और नारियों की स्वतंत्रता का भी अपहरण हो गया I उनकी प्रेम, बलिदान और सर्वस्व समर्पण की भावना उनके लिये ही घातक सिद्ध हुई I पर्दा प्रथा को बढ़ावा मिला, समाज में महिलाओं का स्थान गौण हो गया, उन्हें शिक्षा से वंचित कर दिया गया I उनके सामाजिक जीवन का क्षेत्र सीमित कर दिया गया I कमोबेश आज भी भारत में विशेषकर गावों तथा छोटे शहरों में स्त्रियों की स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं हुआ है I आज समस्याओं का रूप भले बदल गया हो नारियों के लिये सम्मानित जीवन जीना आज भी बहुत कठिन है I उन्हें आर्थिक रूप से परावलम्बी रहना पड़ता है, अशिक्षा, कुपोषण, अस्वच्छता तथा स्वास्थ्य सम्बन्धित अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिनके कारण न तो वे एक खुशहाल जीवन की कल्पना कर सकती हैं न ही अपने व्यक्तिगत जीवन में कोई मुकाम हासिल कर सकती हैं I उनकी प्रतिभाओं का विकास होना तो दूर रहा, उन्हें अपने महिला होने के कारण ही अपमान सहना पड़ता है I  
विश्व की आबादी का लगभग आधा भाग महिलाएँ हैं, लेकिन उनके हित के लिये नीतियों का निर्धारण पुरुष करते आये हैं I भारत ही नहीं विश्व भर की संसदों में महिलाओं को आज तक उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है, पूरी दुनिया में केवल १७.५% महिलाओं की ही राजनीति में भागेदारी है I अमेरिका तथा योरप के देशों में २०% तथा अरब देशों में मात्र ९.६% महिलाएं ही संसद में भाग लेती हैं, भारत इस मामले में विश्व में १३४ वें स्थान पर आता है I भारतीय संसद में उंगलियों पर गिनी जा सकने के लायक महिलाएं हैं, यही हालत राज्यों की विधानसभाओं की है I
समाज में महिलाओं को सम्मान व समानता दिलाने के लिये राजनीति में उनकी भागीदारी तय करना बहुत जरूरी है I यह जग विदित है कि सदा से पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता रहा है I आज भी समाज में दहेज प्रथा, बाल विवाह, कन्या भ्रूण हत्या, विधवाओं पर होते अत्याचार, लड़कियों के साथ आये दिन छेड़-छाड़ व दुर्व्यवहार की समस्याएँ आम हैं I परिवार में पुत्र के जन्म पर जो खुशी महसूस की जाती है वह कन्या के जन्म पर नजर नहीं आती, नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी नहीं के बराबर है, शिक्षा संस्थानों में भी यही हाल है, देश की ज्यादातर लड़कियों को अपनी पढ़ाई दसवीं कक्षा से पहले ही छोड़ देनी पड़ती है I आज भी महिलाएं वेतनमानों तथा स्वास्थय के मामले में काफी पीछे हैं, उनके साथ खुले आम भेद भाव हो रहा है, उनके लिये आर्थिक योजनाएं शुरू करने, नौकरियों तथा उच्च शिक्षा संस्थानों में स्थान आरक्षित करने की बहुत आवश्कयता है I कानून और व्यवस्था सुधारने की भी उतनी ही जरूरत है ताकि महिलाएं बाहर जाकर खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें. गावों में लडकियाँ आज भी विद्यालयी शिक्षा से वंचित हैं I इन सब कारणों से जरूरी है कि उन्हें संसद में सीधे हिस्सेदारी दी जाये, जिससे नीति निर्धारण में उनकी साझेदारी संभव हो सके क्योंकि चुनी हुई महिलाएं अपनी समस्याओं पर ज्यादा ध्यान दे सकेगीं, अतः महिलाओं का राजनीतिक सशक्तीकरण अत्यंत आवश्यक है I
हमारे देश में महिलाओं की सुरक्षा और उनके संरक्षण के लिये व बराबरी का दर्जा देने के लिये दर्जन भर से ज्यादा कानून हैं, लेकिन इनके बावजूद उनका शोषण किसी न किसी रूप में होता आया है I संसद तथा विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी उनकी सुरक्षा तथा अधिकारों के लिये अब तक बनाये कानूनों में सर्वोपरि होगी I आज से सोलह वर्ष पूर्व १९९६ में  महिलाओं को संसद तथा विधानसभाओं में ३३% आरक्षण देने का मुद्दा उठा था, पर इतने वर्षों तक यह किसी न किसी कारण से लटकता ही आ रहा है I दो वर्ष पहले ९ मार्च २०१० को राज्यसभा में यह विधेयक पारित होने के बावजूद लोक सभा में इसे मंजूरी नहीं मिल पायी है I पंचायत राज्य और स्थानीय निकाय सम्बंधी संविधान संशोधन विधेयक पारित होने के बाद महिलाओं की आवाज इस मसले पर और सशक्त हुई है I लगभग सभी राजनितिक दलों के चुनाव घोषणा पत्र में इस बिल को पास करने का वायदा किया जाता रहा है, लेकिन महिलाओं के आरक्षण को लेकर उनकी कथनी व करनी में बहुत अंतर है इसीलिए आज तक सफलता नहीं मिल सकीI सभी राजनितिक दल महिलाओं के जीवन में खुशहाली लाने के लिये इसे संसद में मन्जूरी दिलाने का आश्वासन तो देते हैं पर स्वार्थ वश कभी भी गम्भीरता से इस दिशा में उनके द्वारा प्रयास नहीं किये गएI इस विधेयक को पारित करने के लिये भारतीय संविधान में संशोधन करना पड़ेगा तथा इसे दो तिहाई बहुमत से पास करना जरूरी है I विरोध करने वाले नेता यह कहते हैं कि यदि यह बिल अपने वर्तमान स्वरूप में पास हो गया तो अगले कुछ ही वर्षों में लोकसभा में ९०% महिलाएं ही नजर आयेंगी I आज भी देश की राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, विपक्षी नेता, यू पी ए अध्यक्ष सभी पदों पर महिलाएं ही हैं, जो बिना आरक्षण के आयी हैं I वे यह भी कहते हैं कि निचली जातियों तथा अल्पसंख्यकों के लिये भी आरक्षण होना चाहिए, अन्यथा सभी सीटों पर उच्च वर्ग की पढ़ी लिखी महिलाओं का चयन निश्चित है I
राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति दोनों ने महिला आरक्षण विधेयक को देश के लिये जरूरी बताते हुए शीघ्र पारित किये जाने की बात कही है, क्योंकि देश के विकास में महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक भागीदारी हुए बिना आधी आबादी को न्याय मिलना असम्भव है I
आज हर क्षेत्र में महिलाओ के बढ़ते वर्चस्व ने यह साबित कर दिया है कि यदि अवसर मिले तो वे किसी मामले में भी पुरुषों की अपेक्षा कम नहीं हैं I यदि यह बिल पास हो जाता है तो संसद में ५४३ सीटों में से १८३ पर केवल महिलाएं चुनाव लड़ेंगी I ऐसा होने पर संसद का माहौल ही बदल जायेगा, वहाँ का स्तर ऊँचा होगा तथा संसदीय कार्य भी सुचारू रूप से होगाI राजनीति का अपराधीकरण रुकेगा I आज चुनावों में जिस तरह कालाधन खर्च किया जाता है तथा धांधली की जाती है, बाहुबल के आधार पर वोट हथियाए जाते हैं ऐसे में महिलाओं के लिये साफ-सुथरे साधन अपना कर संसद में पहुँचने के लिये आरक्षण के अलावा कोई मार्ग नहीं है I वास्तव में महिलाओं का राजनितिक सशक्तिकरण स्वयं में एक उद्देश्य ही नहीं है बल्कि असमानता पर आधारित समाज व्यवस्था में परिवर्तन लाने का एक साधन भी है I



बुधवार, मार्च 7

जर्रा-जर्रा गीत सुनाये


जर्रा-जर्रा गीत सुनाये


बौराया है आम रसीला, मधु लुटाता भर भर झोली
फागुन मस्त हुआ सा डोले, लहराए फूलों की टोली

कंचन फूला श्वेत गुलाबी, रूद्र पलाश आग लगाता
मुग्ध पलाश करे तैयारी, होली का उत्सव जो आता

खनक उठीं चूडियाँ, झाँझर, ढोल मंजीरे भी खडकाए
घुँघरू नाचे, बजी पायलें, जर्रा-जर्रा गीत सुनाये

छोड़ें सारी उलझन मन की, जरा आँख भर गगन निहारें
पुलक भरें उर अंतर में अब, बिछुडे उस प्रियतम को पुकारें  

कोयल विरही जनम जनम की, जाने कैसी पीड़ा उर में
फागुन में वह भी मतवाली, गाए तराने पंचम सुर में

जो पाना है मिला हुआ है, घटना बरसों पहले हो ली
होली याद कराने आयी, खुशियों से हम भर लें झोली

दौड़ लगाते फिरते पीछे, सँग जिसके मिल के हमजोली
वह कस्तूरी भीतर ही है, ऊपर वाला करे ठिठोली 

सोमवार, मार्च 5

अमृत बन कर तू ढलता है



अमृत बन कर तू ढलता है


तुझसे परिचय होना भर है
कदम-कदम पर तू मिलता है,
उर का मंथन कर जो पाले
परम प्रेम से मन खिलता है !

भीतर के उजियाले में ही
सत्य शाश्वत झलक दिखाता,
कण-कण में फिर नजर तू आये
श्वास-श्वास में भीतर आता !

पहले आँसू जग हेतु थे
अब तुझ पर अर्पित होते हैं
अंतर पुष्प अश्रु माल बन  
अंतर के तम को धोते हैं !

पात्र यदि मन बन पाए तो
अमृत बन कर तू ढलता है,
हो अर्पित यदि हृदय पतंगा
ज्योति बन कर तू जलता है !

शुभ संकल्प उठें जब मन में
भीतर इन्द्रधनुष उगते हैं,
सुंदरता भी शरमा जाये
ऐसे सहस्र कमल खिलते हैं !

शनिवार, मार्च 3

आनंद को स्वप्न ही जाने



आनंद को स्वप्न ही जाने


जब तक हाथों में शक्ति है
जब तक इन कदमों में बल है,
मन-बुद्धि जब तक सक्षम हैं
तब तक ही समझें कि हम हैं !

जब तक श्वासें है इस तन में
जब तक टिकी है आशा मन में,
तब तक ही जीवित है मानव
वरना क्या रखा जीवन में !

श्वास में कम्पन न होता हो
मन स्वार्थ में न रोता हो,
बुद्धि सबको निज ही माने
स्वहित, परहित में खोता हो !

जब तक स्व केंद्रित स्वयं पर
तब तक दुःख से मुक्ति कहाँ है,
ज्यों-ज्यों स्व विस्तृत होता है
अंतर का बंधन भी कहाँ है !

जब तक खुद को नश्वर जाना
अविनाशी शाश्वत न माने,
तब तक भय के वश में मानव
आनंद को स्वप्न ही जाने !