बुधवार, जनवरी 27

किसने रोका है पथ अपना


किसने रोका है पथ अपना

वैसे ही हो जाते हैं हम
जैसा होना सदा चाहते,
फूलों से खिल सकते इस क्षण
नेह सुवास यदि बिखराते !

स्रोत वही है अनुपम अपना
जिससे झरे पराग प्रीत का,
झांकें पल भी अंतर्मन में
मिल जाता है स्वाद जीत का !

किसने रोका है पथ अपना
सिवा हमारी भूलों भ्रम के,
रुक जाते क्यों कदम कहीं पर
फूल बनेंगे मोती श्रम के ! 

गुरुवार, जनवरी 14

लोहित के पार ( अंतिम भाग )


३१ दिसम्बर २०१५
शाम के पांच बजे हैं. हम अभी-अभी अपने कैम्प में आये हैं. बेंत की चटाइयों से बनी दीवारों वाला यह कमरा आज की रात भी हमारा निवास स्थान है. सुबह पांच बजे नींद खुली. बाहर अँधेरा था. वायदे के अनुसार यहाँ काम करने वाला एक किशोर दो बाल्टी गर्म पानी ले आया. यहाँ काम करने वाले तीनों किशोर पढ़ाई भी कर रहे हैं, सुबह का काम निपटा कर वे स्कूल चले जाते हैं, दोपहर बाद फिर से आ जाते हैं. साढ़े सात बजे हम भोजन कक्ष में नाश्ते के लिए पहुंचे. ठीक आठ बजे मायोदिया के लिए रवाना हुए जिसके आगे ‘हुलनी’ नामक स्थान है. रोइंग मात्र सोलह सौ फीट की ऊँचाई पर है. मात्र सत्तावन किमी की यात्रा में हमें साढ़े छह हजार फीट की ऊँचाई पर पहुंचना था. रास्ता मनोरम था किन्तु रोमांचक भी. ऊंचे-ऊंचे पेड़ों से घिरे पहाड़ तथा गहरी घाटियाँ. नीली-हरी पर्वतों की श्रंखलायें अपनी ओर बुलाती प्रतीत होती थीं. काफी जगह सड़क टूटी हुई थी, सड़क निर्माण का कार्य चल रहा था. मील के पत्थरों पर तिवारी गाँव का नाम पढ़कर हमें थोडा अचरज हुआ. पता चला कि वास्तव में ऐसा कोई गाँव नहीं था, पर एक जगह तिवारी नाम का एक व्यक्ति जो सड़क  निर्माण के कार्य में नियुक्त था, वर्षों तक रहा, उसी के नाम पर उस स्थान का नाम पड़ गया.
   
मंजिल पर पहुंच कर बर्फ दिखी जो सड़क के दोनों किनारों पर जमी थी, पहाड़ों की ढलान पर भी बर्फ थी और वातावरण में ठंड बढ़ गयी थी. हमने स्वेटर, दस्ताने, टोपी सभी कुछ पहन लिए और फोटोग्राफी करते हुए बर्फ का आनन्द लिया. वापसी की यात्रा अपेक्षाकृत सरल थी. दोपहर डेढ़ बजे हम वापस लौट आये. दोपहर का भोजन कर हम पास के बाजार गये. छोटा सा ही बाजार है, जहाँ आवश्यकता का सब सामान मिलता है. बाहर नव वर्ष की पार्टी की तैयारी हो चुकी है. सुबह ही टेंट लगाने वाले आ गये थे, एक तरफ शामियाने में बुफे का इंतजाम है. दूसरी तरफ गोल श्वेत टेंट के नीचे कुर्सियां लगी थीं. दोपहर से ही भोजन बनाने का कार्य भी आरम्भ हो गया है.

कुछ देर बाद श्री पुलू ने हमें बुलाया, उनका परिवार भी आ चुका था. दो कमरों के मध्य के हॉल में आग जलाने का प्रबंध है. एक टीन की शीट पर मिट्टी का लेप था उस पर एक लोहे का चूल्हा था जिसमें लकड़ियाँ जलाकर आग सुलगाई जाती है. चारों तरफ चटाइयाँ तथा कार्पेट बिछे थे. उन्होंने ग्रीन टी के साथ गाजर का हलवा पेश किया, बाहर भी कुछ मेहमान आ चुके थे. सुबह से आकाश पर छाये बादल अब छंट गये थे और तारे चमक रहे थे. जैसे प्रकृति भी मेहरबान हो गयी थी, क्योंकि वर्षा होने का अर्थ था सभी को भीतर जाना पड़ता. श्रीमती पुलू डिस्ट्रिक ऑफिस में एकाउंटेंट हैं. वह तेजू में रहती हैं. दोनों बच्चों को पिता ही सम्भालते हैं. श्री पुलू ने कहा, वे हाउस-हसबैंड हैं. उनके कैम्प में देश-विदेश से कई शोध विद्यार्थी आते हैं. अरुणाचल के जंगलों में जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों का अध्ययन करते हैं तथा यहाँ के जंगली प्राणियों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी एकत्र करते हैं. वे स्वयं उनके साथ जंगलों में मीलों पैदल चलकर कैमरे तथा अन्य उपकरण आदि लगाने में मदद करते हैं. पक्षी प्रेमी भी वहाँ आकर ठहरते हैं. प्रदेश के इतिहास के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि अरुणाचल वासी शताब्दियों पूर्व चीन से म्यांमार  होते हुए यहाँ आये थे. वे कबीले बनाकर रहते थे. उन्होंने यह भी बताया कि खुदाई करने पर इस इलाके से जो स्तम्भ प्राप्त हुए हैं उन पर लिखी भाषा को पढ़ा नहीं जा सका है यहाँ विवाह संबंध मध्यस्थों के द्वारा तय होते हैं. लड़के वाले लड़की का हाथ मांगने जाते हैं तथा दहेज भी उन्हें ही देना पड़ता है. देखा जाता है कि पिछली दस पुश्तों में दोनों परिवारों में कोई रक्त संबंध तो नहीं था. रोइंग में कोई कालेज नहीं है, पढ़ने के लिए तेजू जाना पड़ता है, पर वहाँ भी केवल कला विषय पढाये जाते हैं. रोचक चर्चा चल रही थी कि भोजन का समय हो गया. पहले उन्होंने केक काटा, पर वह केक के स्थान पर मिठाई निकली, खोये की मिठाई जिसे केक की तरह सजाया गया था. जो एगलेस केक मांगने पर हलवाई ने उन्हें थमा दिया था. हमने नये वर्ष का स्वागत करते हुए वह बर्फी केक खाया. भोजन में केले के फूल व आलू की स्वादिष्ट सब्जी थी, लाई का सूखा साग बना था. रोटी सफेद व कोमल थी. बाहर की पार्टी का शोर बढ़ता जा रहा था. अग्नि के पास बैठकर हमने रात्रि भोजन किया, जो मेजबान द्वारा अति प्रेम से परोसा गया था.

कुछ देर बाद हम सांसद की पार्टी में शामिल होने गये. सभी आनन्दमग्न थे, पुराने हिंदी फ़िल्मी गीत बज रह थे, पता चला कि मिथि साहब मुहम्मद रफी के फैन हैं तथा स्वयं भी गाते हैं. महिलाएं डाइनिंग रूम में थीं, मैं वहाँ पहुंची तो आकर्षक परिधानों में सजी स्त्रियाँ समूह में बैठी थीं, श्रीमती मिथि से पहले मिल चुकी थी सो उन्होंने सबसे परिचय कराया, लगभग सभी के पति सरकारी नौकरियों में थे. एक सुंदर गौरवर्णी महिला कहने लगीं उनके समाज में अधेड़ उम्र की महिलाएं उत्सवों में चावल की बनी मदिरा का पान करती हैं. वे इसके फायदे भी गिनाने लगीं. जब मैंने कहा बिना पिए ही ये सब प्राप्त हो सकता है तो उन्होंने स्वीकार किया और वहीँ बैठी दो महिलाओं को दिखाकर कहा, ये दोनों बिलकुल नहीं पीतीं. आधा घंटा वहाँ बिताकर हम कमरे में आ गये.  
   

आज नये वर्ष का पहला  दिन है, सुबह साढ़े पांच बजे नींद खुली. रात को पार्टी सम्भवतः साढ़े दस-ग्यारह बजे तक चली होगी. ठंड काफी थी और और छोटे बच्चे वाले परिवार बहुत थे, सो लोग जल्दी चले गये होंगे. सुबह नहा-धोकर आठ बजे नाश्ता करके हम रोइंग से विदा लेकर रवाना हुए और मार्ग में चार नदियों को पार कर तिनसुकिया में खरीदारी करते हुए वापस एक बजे घर पहुंच गये. मौसम अच्छा है. धूप खिली है. नये वर्ष की पहली शाम का स्वागत करने के लिए हम तैयार हैं. 

मंगलवार, जनवरी 12

लोहित के पार


अरुणाचल प्रदेश के रोइंग जिले का ‘मिशिमी हिल कैम्प’ दो दिनों के लिए हमारा घर बन गया है. जिसे श्री पुलू चलाते हैं. इस प्रदेश की यह हमारी पहली यात्रा नहीं है, पिछले कई वर्षों के दौरान खोंसा, मियाओ, बोमडिला, तवांग, देवांग, परशुराम कुंड, आदि स्थानों को देखने के बाद इस वर्ष के दो अंतिम दिन बिताने हम रोइंग आए हैं. उत्तर-भारत का सबसे बड़ा राज्य अरुणाचल जिसकी सीमाएं देश में असम तथा नागालैंड से मिलती हैं तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन, भूटान और बर्मा से, प्राकृतिक सुन्दरता के लिए विख्यात है. कल सुबह साढ़े सात बजे हम दुलियाजान से रवाना हुए और असम की सीमा पार कर चोखम नामक स्थान में स्थित बौद्ध मन्दिर ‘पगोडा’ में कुछ देर रुक व नाश्ता करके पांच घंटों की रोमांचक यात्रा के बाद यहाँ पहुंच गये. आलूकबाड़ी में लोहित नदी को वाहन सहित फेरी से पार किया, एक साथ चार-पांच वाहन तथा बीस-पच्चीस व्यक्तियों को लेकर जब नाव नदी पार कर रही थी तो दृश्य देखने योग्य था. नदी पर पुल निर्माण का कार्य जोरों से चल रहा है, पर आगे भी दो-तीन जगह छोटी-उथली नदियों को उनमें से गुजर कर पार करना पड़ा, जिन पर पुल बनने में अभी काफी समय लगेगा. छोटे-बड़े श्वेत पत्थरों से ढके विशाल नदी तट देखकर प्रकृति की महिमा के आगे अवनत हो जाने अथवा विस्मय से भर जाने के अलावा कुछ नहीं किया जा सकता.

दोपहर का भोजन आते ही मिल गया, हल्का-फुल्का शाकाहारी भोजन स्वादिष्ट था. उसके बाद हमने स्थानीय दर्शनीय स्थलों के बारे में जानकारी हासिल की, सौभाग्य से यहाँ के वर्तमान संसद सदस्य वहीं थे, वे नये वर्ष पर उसी रिजॉर्ट में पार्टी आयोजन करने के सिलसिले में बात करने आये थे. उन्होंने ‘सैली लेक’ तथा ‘नेहरु उद्यान’ देख आने के लिए कहा. रोइंग से छह किमी दूर स्थित ‘सैली झील’ हरे-भरे वृक्षों तथा पहाड़ियों से घिरी है. झील के चारों ओर सुंदर भ्रमण पथ बने हैं. तस्वीरों में हमने उसकी सुन्दरता को कैद किया और कुछ देर वहाँ रुकने के बाद नेहरु उद्यान पहुंचे, जो एक विस्तृत इलाके में फैला है, बच्चों के लिए झूले, ग्रीन हॉउस तथा फूलों के बगीचे और विशाल पेड़ों से सजा यह उद्यान सुबह-शाम घूमने वालों के लिए आदर्श स्थान है. लौटे तो नदी किनारे जाकर कुछ तस्वीरें लीं शाम ढलने को थी, डूबते हुए सूर्य को प्रणाम करते हुए हम कमरे में  लौट आये.

जिस कमरे में बैठकर मैं लिख रही हूँ, उसके फर्श पर बेंत से बनी सुंदर चटाई बिछी है. दीवारें तथा छत भी लकड़ी तथा पतले बांस की बनी हैं. लकड़ी की ही शय्या है, दरवाजे से बाहर निकलते ही एक बड़ा सा अहाता है, जिसका फर्श भी लकड़ी का है. कुछ ही दूर पर भोजनालय है और दायीं ओर एक नदी बहती है. सामने ऊंचे पहाड़ हैं. इस कैम्प तक पहुंचने से कुछ कदम पहले ही यहाँ के भूतपूर्व मुख्यमंत्री तथा वर्तमान सांसद श्री मुकुट मिथि का बंगला है, जो शानदार है. अभी कुछ देर पहले हम उनके निमन्त्रण पर एक कप कॉफ़ी पीने गये. उनकी मेहमाननवाजी का लुत्फ़ उठाया, वे सरल स्वभाव के हैं तथा उन्हीं की तरह उनकी पत्नी भी बहुत गर्मजोशी से मिलीं. वे मिशिमी जन जाति के हैं, इस जाति की भी तीन उपजातियां हैं, जिनके लोगों की पहचान पारंपरिक वस्त्रों के रंगों से होती है. घर की साज-सज्जा पारंपरिक व आधुनिक वास्तुकला का मेल थी. देश के कई भूतपूर्व कांग्रेसी नेताओं के चित्रों को वहाँ देखा. घर के पिछले भाग में एक बड़ा सा हॉल था, जहाँ  बीचोंबीच व्यवस्थित ढंग से आग जल रही थी, छत से लटकता हुआ एक बांस का बना चौकोर तख्ता देखा, जिस पर महीन बेंत की चटाई लगी थी, जो धुंए को अपने में समा लेता है. फर्श पर भी चटाइयां बिछी थीं. कई बेंत के मूढ़े पड़े थे. उन्होंने बताया, उनके गाँव में हर घर में एक ऐसा स्थान होता है, परिवार का मुखिया उस स्थान पर बैठता है. दायीं तरफ पंक्तिबद्ध उसकी घर की महिलाओं के कमरे होते हैं. यहाँ पहले बहुपत्नी प्रथा थी. सभी महिलाएं अपने-अपने यहाँ पकाए भोजन को वहाँ लाकर रख देती हैं तथा सब मिलकर भोजन ग्रहण करते हैं. अरुणाचल के इतिहास व भूगोल के बारे में हमने उनके साथ रोचक वार्तालाप का आनन्द लिया. ब्रह्मपुत्र के जन्म तथा परशुराम कुंड से जुड़ी पौराणिक कथाएँ भी उन्होंने सुनायीं. एक बार ऋषि शांतनु व उनकी पत्नी पुत्र प्राप्ति के लिए तप कर रहे थे, प्रसन्न होकर जब ब्रह्मा जी वर देने आये तो ऋषि वहाँ नहीं थे. उनकी पत्नी ब्रह्मा जी के चार मुख देखकर भयभीत हो गयीं. पुत्र का जन्म हुआ पर वह द्रव रूप में था, जो ब्रह्मपुत्र नद कहलाया. परशुराम ने जब पिता के कहने पर अपनी माता का सर काटा तो परशु उनके हाथ से अलग नहीं हो रहा था, वे इस स्थान पर आये जहाँ ब्रह्पुत्र का बहाव रुक हुआ था, उस पर्वत पर प्रहार करने से उनका परशु विलग हो गया. एक पंजाबी संत की कथा भी उन्होंने सुनाई जो घूमते हुए यहाँ आ गये थे. सदियों से यहाँ भारत के दूर-दूर स्थानों से साधू-संत आते रहे हैं. भारत एक अनोखी संस्कृति वाला देश है और देश की एकता के सूत्र हर क्षेत्र में बिखरे हुए हैं.

आज यहाँ ठंड काफी कम है, नदी की कल-कल का स्वर एक मधुर संगीत की तरह लगातार गूंज रहा है. हवा में सुंदर पहाड़ी वृक्षों के पत्ते झूम रहे हैं जिनपर नये वर्ष की पार्टी के लिए रौशनी की झालरें भी लगा दी गयी हैं. कल हमें ‘मायोदिया’ देखने जाना है जो आठ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित एक दर्रा है. 
क्रमशः

मंगलवार, जनवरी 5

नये वर्ष में

नये वर्ष में

...क्यों न प्रवेश करें नये आयामों में
पुराने वक्तों को उतार फेंके
ज्यों केंचुल उतार देता है सर्प !
जो किया है अब तक, अगर वही दोहराया
तो क्या खाक नया साल मनाया !
उतार फेंके चश्मा अपनी आँखों से
दुनिया को नये ढंग से निहारें,
क्या चाहता है वह खुदा हमसे
दिल से पूछें, उसे शिद्दत से पुकारें !  
चुभते हैं जो सवाल भीतर
बैठ आराम से उनके हल खोजें,
सहते हैं जो ख्वाब नयनों में
उन्हें साकार करने के नये अंदाज खोजें !
आदमी होकर आये थे जहाँ में
आदमियत की परिभाषा सीखें,
 दी हैं इस कुदरत ने हजार नेमतें
उनका शुक्रगुजार होना सीखें !
नया वर्ष क्या यही कहने
नहीं चला आता बार-बार,
न दोहराएँ वे भूलें
जो की थीं पिछली बार !


शनिवार, जनवरी 2

नया साल मुबारक हो

नया साल

घड़ी की सुईयां जब आधी रात को मिलेंगी
विदा हो जायेगा वक्त का एक वह टुकड़ा
जिसे नाम दिया है हमने ‘दो हजार पन्द्रह’
...और सुगबुगा कर आँख खोलेगा एक नया कालखंड
दिखाकर अपना सुनहरा मुखड़ा !

नये वर्ष में होंगे नए दिन और नयी रातें
नये सूर्योदयों और नव चन्द्रमा से होंगी मुलाकातें
आज तक नहीं घटा सृष्टि में
नया वर्ष उन दिनों, हफ्तों और महीनों को घटायेगा
नये वर्ष में हर फूल पहली बार मुस्कुराएगा
नया इरादा फिर क्यों न करें
नया वादा भी अपने आप से
नये संकल्प कर मनों में
नव शक्ति भरें शुभ जाप से !

पुरानी पर स्वयं के लिए नव, संस्कृति से पहचान करें
जिनसे नहीं मिले बरसों से
उन इतिहास के पन्नों से जान-पहचान करें
नया परिचय हो अपने पुराने देश से
डाल आँखों में आँख मिलें चहूँ परिवेश से
बरसों से भूले हैं काम वे नये करें
नये कुछ मित्र बनें, नये कुछ रंग भरें
आदतों में कैद जो जीवन घट रीत रहा
नये संकल्प भर इसमें नव राग भरें !

बीत गया वक्त जो यादों में बोझ बना
रख दें उतार पल में
अंतर को खाली करें
नये स्वप्नों का करने स्वागत
 लायेगा जो वर्ष आगत  
नव वर्ष कुछ नया तो लायेगा
जीवन कुछ और ढंग से गुनगुनाएगा
धरा उसी तरह चक्कर लगाएगी सूर्य का
पर सूर्य कुछ और वृद्ध हो जायेगा
नये इरादों के पहन कवच
क्यों न उतरें समय की इस भंवर में
नये वर्ष में सराबोर हो जाएँ
उत्साह और उमंग की लहर में !