मंगलवार, मार्च 29

भारत

भारत

शांति का संदेश दे रहा
जो भारत सारी दुनिया को
स्वयं अशांत क्यों हो बैठा ?
प्रीत की डोर से बांधा जिसने
दुनिया के हर कोने को
स्वयं दुविधा में क्यों पैठा ?
सभी धर्म सभी मत वाले
जहाँ साथ ही रहते आये
चार्वाक, अनीश्वरवादी
भी सम्मानित होते आये
उस भारत ने आज कहाँ से
 भेदभाव की सीखी भाषा
जाति जन्म से नहीं कर्म से
जहाँ वर्ण की परिभाषा
सबको आगे बढ़ने का हक
अपनी बात कहे जाने का
सूख रही क्यों उस भारत में
समन्वयता की बेल आज है ?
भारत का भविष्य पूछता
वर्तमान से, क्या विचार है ? 

शुक्रवार, मार्च 18

थोड़ी सी हँसी


थोड़ी सी हँसी

फूल क्या लुटाते हैं ? इतना जो भाते हैं
थोडा सा रंग.. गंध थोड़ी सी
और ढेर सारी खिलावट !
नहीं उनके होने में
जरा सी भी मिलावट,
पास उनके है वही तो मात्र अपना
काया तो माटी से ली उधार है
जल और सूरज का भी उन पर उपकार है
खिलावट मात्र पर ही उनका अधिकार है

बच्चे क्या दे जाते हैं ? जो इतना लुभाते हैं
सहजता सरलता जो उनकी अपनी है
काया का कारण तो जनक-जननी है
भला है क्या हमारे पास कहने को अपना
डर नहीं कभी खोने का जिसका
थोड़ी सी हँसी, खालिस प्यार
शांति और प्रेम की बहती हुई धार !
शेष तो सब जगत से ही पाया है
जिसके होने से न कोई भी 'हो' पाया है
अपना आप ही लुटाना है
यदि फूलों सा मुस्काना है
झरनों सा गाना है
तितलियों सा इतराना है
बच्चों सा खिलखिलाना है !

गुरुवार, मार्च 3

सुख-दुःख

सुख-दुःख

एक को लिया तो दूसरा पीछे आने ही वाला है
चाहा सुख को तो दुःख को गले लगाना ही है

पार हुआ जो मन दोनों से
उसने ही यह राज जान लिया,
सुख की मिन्नत जिसने छोड़ी
दुःख के भी वह पार हो गया !

प्रकृति का ही यह नियम है
जिसे जानकर मुक्त हुआ मन,
जिस पल गिरी चाह अंतर से
मुस्काया वासन्ती जीवन !

सीधा सरल गणित जीवन का
खोजा जिसने दिया गंवाय,
सहज हुआ जो हटा दौड़ से
पल-पल सुख बरसता जाय !

 ना होना ‘कुछ’ बस होना भर
जिसने जाना यह संतोष,
बहे पवन सा जले अगन सा
पाए नभ, नीर सा तोष !



बुधवार, मार्च 2

होना भर यदि क़ुबूल हो

होना भर यदि क़ुबूल हो

दुःख के कांटे यदि नहीं चाहिये
 तो सुख के फूल कैसे खिलेंगे
पतवार खेने का श्रम उठाया नहीं
तो पार भला कैसे उतरेंगे
कुछ पाना है तो कुछ खोना पड़ेगा ही
हँसना है तो रोना भी पड़ेगा ही
देह के हर सुख के साथ जुड़ा है दुःख का टैग
बस परम सुख मिलता है किसी भी दुःख के बगैर
वहाँ सिर्फ होना भर है
वहाँ न कोई डर है
एक रस वहाँ सुख बरसता है
मन उसी सुख के लिए तो तरसता है
पर नहीं लौटता अपने घर
जग के ही लगाता रहता है चक्कर..
जीवन यही एक अनोखा खेल है
अद्भुत इस जग की रेलमपेल है !