सोमवार, मई 29

आँसू बनकर वही झर गया


आँसू बनकर वही झर गया


दुःख की नगरी में जा पहुँचे,
निकले थे सुख की तलाश में, 
अंधकार से भरे नयन हैं  
खोल दिये जब भी प्रकाश में ! 

फूल जान जिसे कंठ लगाया, 
काँटे बनकर वही बिँध गया,  
अधरों पर जो मिलन गीत था 
आँसू बनकर वही झर गया !

तलविहीन कूआं था कोई 
 किया समर्पित हृदय जिस द्वार,
जहाँ उड़ेला भाव प्रीत का 
पाषाण की निकली दीवार ! 

स्वप्न भरे थे जिस अंतर में,
सूना सा वह बना खंडहर
बात बिगड़ती बनते-बनते, 
दिल में पीड़ा बहे निरंतर ! 


शुक्रवार, मई 26

शस्य श्यामला मातरम्


शस्य श्यामला मातरम्

लबालब भरे हैं पोखर अमृत जल से
हरियाली का उतरा समुन्दर जैसे
दूर क्षितिज तक फैले गहरे हरे वन 
देख-देख ठंडक उतर जाती भीतर
कदली वन.. बांस के झुरमुट
धान और अरहर के खेत
कीचड़ सने पाँव कई गाते रहे होंगे गीत
सुंदर अरहर की पूलियां
मानो किसी चित्रकार की आकृतियाँ
नील गगन पर श्वेत मेघ की पूनियां
सुपारी के नारंगी फूल महकते 
पोखर में झाँकता गगन
वृक्षों-पादपों के मोहक प्रतिबिम्ब
मानो बालक-बालिकाएं पंक्तिबद्ध

सोमवार, मई 22

लहरें उठतीं अम्बर छूने


लहरें उठतीं अम्बर छूने


जग पल-पल रूप बदलता है 
कैसे नयनों में थिर होगा,
लहरें उठतीं अम्बर छूने
गिर जातीं सागर फिर होगा !

खो जाता ज्यों भोर  सितारा 
अस्त हो रहे प्राणी ऐसे, 
दृश्य बदलता पलक झपकते  
दुनिया रंगमंच हो जैसे !

विस्मयकारी जग का मालिक 
स्वयं छुपा है पट के पीछे,
अकुलाते यूँ व्याकुल प्राणी  
अभिनय को सत्य मान बैठे !

जब वही रूप धर कर आया 
फिर कौन यहाँ किससे आगे,
नन्हा सा कीट भी उसका है 
ब्रह्मा भी भज उसको जागे ! 

शुक्रवार, मई 19

उड़ न पाते हम गगन में



उड़ न पाते हम गगन  में

गुनगुनी सी आग भीतर 
कुनकुन सा मन का पानी, 
एक आशा ऊंघती सी 
रेंगती सी जिन्दगानी !

फिर भला क्यों कर मिलेगा 
तोहफा यह जिन्दगी का, 
इक कशिश ही, तपन गहरी 
पता देगी मंजिलों का !

जो जरा भी कीमती है 
मांगता है दृढ़ इरादे, 
एक ज्वाला हो अकंपित
 पूर्ण होते अटल वादे !

आज थम कर जरा सोचें 
 गर न हों अवरोध पथ में, 
बिन चुनौती, बिना प्रेरक
 उड़ न पाते हम गगन  में !

सोमवार, मई 15

कोई राग छिपा कण-कण में


कोई राग छिपा कण-कण में

पाहन में ज्यों छिपी अगन है
उर भावों में छिपी तपन है,
कस्तूरी सी महके भीतर,
घट-घट में जो बसी लगन है !

कोई राग छिपा कण-कण में
मृदु अनुराग बसा जीवन में,
मद्धिम-मद्धिम दीप जल रहा
इक  सुगंध  हर अंतर्मन में  !

एक अरूप रूप के भीतर
दृष्टा तकता एक निरंतर,
तम कितना भी घन छा जाए
हीरा एक चमकता भीतर  !

 देह धरा सी गगन सदा  मन
पंख लगा उड़ने को तत्पर,
एक संपदा लेकर आया,
खोल पोटली देखें थमकर !

शुक्रवार, मई 12

परम पूज्य सदगुरू के जन्मदिन पर



परम पूज्य सदगुरू के जन्मदिन पर 


खिलता कमल, पूनम का चाँद
अरुणिम सूर्य, नीला आकाश,
मंद समीर प्रातः का जैसे
सद्गगुरु बहता हुआ प्रकाश !

नयन बोलते, स्मित झरता है
मधुरिम आभा सँग-सँग डोले,
प्रश्न सभी गिर जाते मन के
वाणी राज जगत के खोले !

सुख-दुःख की सीमा दिखलाई
छोड़ दिया ले जा अनंत में,
उत्सव है जीवन का हर पल  
वही विराजे अंतरतम में !

सारे जग का मीत बना है
करुणा और ज्ञान का सागर,
उर कोमल, संकल्प लौह सा
प्रीत भरी ज्यों छलके गागर !

दुनिया के कोने-कोने में
 पहुँचाया संदेश प्रेम का,
द्रवित हुए पाहन से उर भी
दृष्टि मिली सत्य तभी प्रकटा !

जन्मदिवस पर गाता हर दिल
बार-बार आये यह शुभ दिन,
रहें सुवासित पाकर अंतर
ज्ञान पुष्प जो झरते निशदिन !




गुरुवार, मई 11

मन सिमटा आंगन में जैसे


मन सिमटा आंगन में जैसे


फिर घिर आये मेघ गगन पर
फिर गाए अकुलाई कोकिल,
मौसम लौट लौट आते हैं,
जीवन वर्तुल में खोया मन !  

वही आस सुख की पलती है
वही कामना दंश चुभोती,
मन सिमटा आंगन में जैसे
दीवारें चुन लीं विचार की !

मन शावक भी यदि निशंक हो,
 तोड़ कैद उन्मुक्त हुआ सा,
एक नजर भर उसे ताक ले
द्वार खुलेगा तब अनंत का !

निकट कहीं वंशी धुन बजती
टेर लगाता कोई गाये,
निज कोलाहल में डूबा जो  
रुनझुन से वंचित रह जाये !