सोमवार, फ़रवरी 27

बंटना ही जीवन है



 बँटना ही जीवन है 

सूर्य बाँटता है अपनी ऊर्जा
सृष्टि के हर कण से
पुहुप  सांझा करता है
 मधु और गंध
हवा प्रवेश करती आयी है अनंत नासापुटों में
अनंत काल से !

अस्तित्त्व लुटा रहा है बेशर्त पल-पल
जितना देता है वह
 उतना ही भरता जाता है
न जाने  किस अदृश्य कोष से !

लुटाती है माँ अपने अंतर का प्रेम
पोषित होगी शिशु की आत्मा
देह भी उष्ण है मन की ऊष्मा से !

शुचिता है वहाँ जहाँ बहाव है
अटका हुआ मन ही उलझाव है
रोक ली गयी ऊर्जा ही
मन का भटकाव है
अनवरत झरती ऊर्जा ही
भक्ति का भाव है !



शनिवार, फ़रवरी 25

चार कदम पर ही है होली


चार कदम पर ही है होली

मधु टपके बौराया उपवन
जाने कहाँ से रस  भरता है,
गदरायीं मंजरियाँ महकें 
संग समीरण के बहता है !

हुई नशीली फिजां चहकती 
फगुनाई सिर चढ़ कर बोली,
रंग-बिरंगी बगिया पुलके 
चार कदम पर ही है होली !

नन्ही चिड़िया हरी दूब पर 
नई फुनगियाँ  हर डाली पर,
कोई भेज रहा  है शायद
 पाती  गाता  पंछी सुस्वर !

हर पल जीवन उमग रहा है 
कभी धरा से कभी गगन से,
अंतर में यूँ भाव उमड़ते 
धुंधलाया हर दृश्य नयन से !

धूप और छाँव हर पल हैं 
दिवस-रात्रि, सुख-दुःख का मेला,
हास्य-रुदन दोनों घटते हैं
प्रीत बहाए दुई का रेला !

एक से ही उपजे हैं दोनों 
पतझड़ और बसंत अनूठे,
विस्मय से भर जाता अंतर 
दोनों के ही ढंग अनोखे !





शुक्रवार, फ़रवरी 24

कभी पवन का झोंका कोई




कभी पवन का झोंका कोई


नीरव दोपहरी में छन-छन
किरणें वृक्ष तले सज जातीं,
कभी हवा के झोंके संग इक
लहराती पत्ती बिछ जाती !

मधु संचित करते कुसुमों से
भंवरे, तितली अपनी धुन में,
श्वेत श्याम कबूतर जब तब
जाने क्या चुगते बगिया में !

कभी पवन का झोंका कोई
बिखरा जाता पाटल पल्लव,
मुंदने लगती आँख अलस भर
भर जाता प्राणों में सौरव  !

 कलरव करते खगअविकल
जाने क्या कहते गाते हैं,
सृष्टि कितने भेद छुपाये
देख-देख लब मुस्काते हैं !

नील वितान तना है ऊपर
प्रहरी सा निर्भय करता है,
धरा समेटे निज अंक में
जीवन यूँ पल-पल खिलता है ! 

बुधवार, फ़रवरी 22

एक छुअन है अनजानी सी



एक छुअन है अनजानी सी 


शब्दों में कैसे ढल पाए 
मधुर रागिनी तू जो गाए,
होने से बनने के मध्य 
गागर दूर छिटक ही जाए !

एक छुअन है अनजानी सी 
प्राणों को जो सहला जाती,
एक मिलन है अति अनूठा 
हर लेता हर व्यथा विरह की !

मदिर चांदनी टप-टप टपके
कोमलतम है उसका गात,
 तके श्याम बाट राधा की 
 भूली कैसे वह यह बात !

जिस पल तकती वही वही है 
मौन रचे जाता है गीत,
ज्यों प्रकाश ही ओढ़ आवरण 
बहता चहूँ  दिशि बनकर प्रीत !

जाने कितने करे इशारे 
अपनी ओर लिए जाता है,
पल भर काल न तिल भर दूरी 
अपनी खबर दिए जाता है ! 




बुधवार, फ़रवरी 8

सीधे घर वापस ले चल दी




सीधे घर वापस ले चल दी

कितने ख्वाब अधूरे मन में 
कितनी  आशाएं पलती थीं, 
मृत्यु ने दस्तक भी न दी 
सीधे घर वापस ले चल दी !

कुछ भी न कह पाये मन की 
जीवन एक अधूरी गाथा,
साथ जियेंगे साथ मरेंगे 
घबराहट में  भूला वादा  !

कितनी यात्रायें शेष थीं 
  अंतिम होगी यह  खबर किसे,
जीवन भी अभी नहीं मिला था 
भेंट अचानक हुई मौत से !

रहे भुलाये जिसको चलते 
साथ-साथ शायद चलती थी,
जीवन जिसको मान रहे थे 
भीतर ही मृत्यु पलती थी !

होश संभाले हर पल कोई 
वही इसे जान सकता है,
मीत बनाये जो मृत्यु को 
रार वही ठान सकता है !

जीवन-मृत्यु संगी साथी 
सुख-दुःख या जैसे दिन-रात,
एक साथ दूजा मिलता है 
है इतनी सी  जो समझे बात ! 

मंगलवार, फ़रवरी 7

स्वाद हो या रास का सा


स्वाद हो या रास का सा


एक शीतल सा धुआं है
या धुंधलका शाम का सा,
एक ज्योति रक्त वर्णी
एक दीपक अनदिखा सा  !

नाद अनहद गूँजता यूँ
गीत अनगाया हुआ सा,
सृष्टि का हो बीज जैसे
हर कहीं छाया हुआ सा !

एक झोंका प्रीत का हो
गंध ऐसी मदभरी सी,
एक अनजाने नगर से
भर संदेसे ला रही सी !

रस भरा महुआ टपकता
या मद मृदु रसाल का सा,
फूटी हो नवनीत गगरी
स्वाद हो या रास का सा !

एक अनछुआ परस हो
  स्पर्श कोई हो परों सा,
पुलक कोई भर रहा हो
हाथ बन आशीष सा !

शुक्रवार, फ़रवरी 3

चाँद झलकता है


चाँद झलकता है 

जब सो जाती है झील 
नहीं उठती कोई भी लहर 
उसके आंचल पर 
तब चाँद झलकता है 
बिखर जाती है ज्योत्स्ना 
और भर जाती सुवास 
पर हल्की सी लहर भी 
तोड़ देती है प्रतिबिम्ब  
बिखर जाती चांदनी 
खो ही जाती है 
उथल-पुथल में 
थम जाए पल भर मन 
कुछ भी  न आने दें 
मध्य में अपने और उसके 
फिर होगा मिलन 
थिर होगा जब अंतर का दर्पण  !

गुरुवार, फ़रवरी 2

प्रीत बहे धार सी




प्रीत बहे धार सी

मन सपने बुनता है 
फिर-फिर सिर धुनता है,
जीवन की बगिया से 
कांटे ही चुनता है ! 

जन्नत बनाने का 
भीतर सामान है, 
दोजख की आग में 
व्यर्थ ही भुनता है !

स्वयं को ही कैद करे 
झूठी दीवारों में,
ख्वाबों में गाए कभी  
गीत वही सुनता है !

मन जो ठहर जाये 
 डोर कोई थाम ले,
प्रीत बहे धार सी 
मन्त्र सा गुनता है !