बुधवार, जनवरी 31

कुछ दिन तो गुजारें गुजरात में

प्रिय ब्लॉगर मित्रों, पिछले दिनों गुजरात की यात्रा का सुअवसर प्राप्त हुआ, यात्रा विवरण लिखने में समय लगेगा, सोचा, जो भाव अभी मन में ताजा हैं, उन्हें ही आकार दे दिया जाये, आपसे अनुरोध है, कविता पढ़ें और गुजरात देखने की प्रेरणा आपके भीतर भी जगी या नहीं, इस पर अपनी राय भी लिखें।


कुछ दिन तो गुजारें गुजरात में


पाषाण युग की बस्तियों के साथ

विश्व की प्राचीनतम सभ्यता का  

उद्गम स्थल 

जिसके चिह्न 

धौलावीरा में सुरक्षित हैं !

अफ़्रीका के पूर्वी किनारे से 

आ बसे 

आदिमानव के वंशज 

जहाँ आज भी हैं !

उनकी कलाओं का 

सम्मान भी किया जाता है, 

सदियों पूर्व बना

व्यापार का केंद्र 

तापी के तट पर बसा सूरत

इतिहास रचा गया 

साबरमती के तट पर 

पोरबंदर बापू की 

 अनमोल स्मृति दिलाता है !

गढ़े मानक आस्था के   

सोमनाथ की अमरता ने 

जगायी श्रद्धा और भक्ति 

द्वारिका की हवा में जादू है 

उमड़ती हज़ारों की भीड़ 

कृष्ण, रुक्मणी, सुदामा

जैसे आज भी जीवित हैं !

भुज उठ खड़ा हुआ पुन:

अंकित है ‘स्मृति वन’ में

कच्छ के रण की फ़िज़ाँ   

उमंग व ऊर्जा से पोषित है !

नमक के श्वेत मैदान 

चाँदनी रात में चमकते हैं जहाँ 

हज़ारों पंछियों की ध्वनि से

गूँजता है आसमाँ

 गीर के जंगलों में 

राजा का निवास 

एशियाई शेरों का घर

विश्व की धरोहर है ख़ास 

विश्व की सर्वाधिक ऊँची 

सरदार की मूरत 

बनी है केवड़िया की शान 

नर्मदा और माही के किनारे

बसे तीर्थ हैं इसकी आन

पश्चिम में मीलों तक फैले 

अनुपम विशाल सागर तट

हर पर्यटन स्थल जैसे 

अपनी ओर बुलाता है 

चंद दिन गुज़ार गुजरात में 

हर कोई 

उत्सव के रंग में डूब जाता है !

मंगलवार, जनवरी 30

जल

जल 

हम छोटे-छोटे पोखर हैं 

धीरे-धीरे सूख जाएगा जल 

भयभीत हैं यह सोचकर 

सागर दूर है 

पर भूल जाते हैं 

सागर ही 

बादल बनकर बरसेगा 

भर जाएँगे पुन:

हम शीतल जल से

नदिया बन जल ही 

दौड़ता जाता है  

सागर की बाहों में चैन पाता है ! 


रविवार, जनवरी 21

राम

 राम 

एक शब्द नहीं है राम 

न ही कोई विचार 

बाल्मीकि के मन का 

भाव जगत की वस्तु भी 

नहीं है तुलसी के 

परे है हर शब्द, भाव व विचार से 

एक अमूर्त, निराकार 

जिसने भर दिया है 

उत्साह और उमंग 

शांति और आनंद 

ख़ुशी कोई विचार तो नहीं 

एक अहसास है 

वैसे ही राम उनके हैं 

जो महसूस करते उन्हें 

अपने आसपास हैं 

हर घड़ी हर मुहूर्त से परे 

वे सदा थे सदा हैं 

वे प्रतिष्ठित हैं 

हमें इसका अहसास करना है 

राममंदिर में विराजित 

राम लला की मूरत में

ह्रदय के 

विश्वास और श्रद्धा का 

रंग भरना है ! 



मंगलवार, जनवरी 16

हर दिन नयी भोर उगती है

हर दिन नयी भोर उगती है


दिन भी सोया सोया गुजरा 

दु:स्वप्नों में बीती है रात, 

जाग जरा, ओ ! देख मुसाफ़िर 

प्रमाद लगाये बैठा घात !


चाह अधूरी सर्प सी लिपट

कर्मों की गठरी भी सिर पर, 

कदम थके हैं, भय अंतर में 

कैसे पहुँचेगा अपने घर !


जीवन चारों ओर खिला है 

तू कूपों का बना मंडूक, 

जो भी कदम उठे सच्चा हो 

अबकी न बाज़ी जाये चूक !


हर दिन नयी भोर उगती है 

जब भी जागो तभी सवेरा, 

जब निर्भय होकर जीना है 

क्यों अतीत ने मन को घेरा !


सोमवार, जनवरी 15

पुनः अयोध्या लौटते राम

पुनः अयोध्या लौटते  राम

सारे भूमण्डल में फैली 

रामगाथा में बसते राम, 

जन्मे चैत्र शुक्ल नवमी को

मर्यादा हर सिखाते राम !


पैरों में पैजनियां पहने 

घुटनों-घुटनों घूमते  राम, 

माँ हाथों में लिए कटोरी

आगे आगे दौड़ते  राम !


गुरुकुल में आंगन बुहारते 

गुरू चरणों में झुकते राम, 

भाइयों व मित्रों को पहले 

निज हाथों से खिलाते राम !


ताड़का सुबाहु विनाश किया 

 यज्ञ की रक्षा करते राम, 

शिव का धनुष सहज ही तोडा 

जनक सुता को वर रहे  राम !


जन-जन के दुःख दर्द को सुन 

अयोध्या को संवारें राम, 

राजा उन्हें बनाना चाहें  

पिता नयनों के तारे राम !


माँ की इच्छा  पूरी करने  

जंगल-जंगल घूमते राम, 

सीता की हर ख़ुशी चाहते 

हिरन के पीछे जाते राम !


जटायु को गोदी में लेकर 

आँसूं बहाते व्याकुल राम, 

खग, मृग, वृक्षों, बेल लता से 

प्रिया का पता पूछते राम !


शबरी के जूठे बेरों को 

अतीव स्वाद ले खाते राम, 

महावीर को गले लगाते 

सुग्रीव मित्र बनाते राम !


छुप कर तीर बालि को मारा 

दुष्टदलन सदा  करते राम, 

महावीर  को दी अंगूठी 

स्मरण  सिया  नित्य  करते राम !


सागर पर नव  सेतु बनाया 

शिव की अर्चना  करते राम, 

असुरों का विनाश कर लौटे 

पुनः अयोध्या लौटते  राम !




शुक्रवार, जनवरी 12

जब अनंत को सांत बनाया


जब अनंत को सांत बनाया 

त्रेता युग में प्रकटे थे वह 

मर्यादापुरुषोत्तम राम,  

युग-युग से भजता आया जग 

पावन अतीव मनोहर  नाम !


जब अनंत को सांत बनाया 

 अवतार लिया महाविष्णु ने, 

किंतु  राम रहे कहाँ सीमित

भारत भू की सीमाओं में !


राम नाम के मधुर जाप ने 

सारी दुनिया को गुंजाया, 

है हरि अनंत कथा अनंता 

युग-युग ने गीत यही गाया  !


जन्मस्थल पर सुंदर मन्दिर 

स्वप्न आज यह पूर्ण हुआ है,  

राम राज्य भी लौटा लाएं   

वर्तमान यह माँग रहा है  ! 


हो स्थापना परम  मूल्यों की 

 राजाराम चले थे जिन पर,

दुनिया को शुभ मार्ग दिखाया  

आदर्श पुत्र, प्रिय भाई बन  !


माँ सीता का नाम सदा ही  

राम ने आगे ही लगाया,  

सहने पड़े अनेक अपवाद   

सदा सत्य को ही अपनाया !


बुधवार, जनवरी 10

एक लपट मृदु ताप भरे जो

एक लपट मृदु ताप भरे जो 



बैंगनी फूलों की डाल से

फूल झर रहे झर-झर ऐसे, 

लहरा कर इक पवन झकोरा 

सहलाये ज्यों निज आँचल से !


याद घेर लेती है जिसकी 

बनकर अनंत शुभ नील गगन, 

कभी गूंजने लगता उर में 

अनहद गुंजन आलाप सघन ! 


एक लपट मृदु ताप भरे जो 

हर लेती हृदय का संताप, 

सुधियाँ किसी अरूप तत्व की 

बनी रहतीं फिर भी अनजान ! 


सागर-लहर, गगन-मेघा सा 

नाता उस असीम से उर का, 

कौन समाया किस पल क़िसमें  

ज्योति अगन या गंध सुमन में !



सोमवार, जनवरी 8

बूँद एक घर से निकली थी

बूँद एक घर से निकली थी 


अंधकार में ठोकर खाते 

आँखें बंद किए चलते हैं, 

जाने कौन  मोह में फँस कर 

अक्सर ख़ुद को ही छलते हैं !


छोटी-छोटी इच्छाओं के 

बोझे तले व्यर्थ दबते हैं, 

सिर पर गठ्ठर लादे, जाने

कब से बीहड़ पथ चलते हैं !


अनजाने ही रह जाते वह 

अपने दिल की गहराई से, 

जीवन की संध्या आ जाती 

कान भरे हैं शहनाई से !


सागर से मिल सकती थी जो 

मरुथल में दम तोड़ रही है, 

बूँद एक घर से निकली थी 

जाने क्या वह जोड़ रही है ! 


अपनी ही ऊँचाई से बच 

बौना होता जाता मानव, 

पहचाने जाते थे पहले 

अब सबके भीतर ही दानव ! 


दुख की ठोकर जब भी लगती 

जाग देखता है सोया मन, 

पीड़ा ही पथ पर रखती है 

सुख में तो भटका है जीवन !


पर्वत जैसा दुख भी आये 

सागर सुख का ठाँठे मारे, 

आँख मूँद कर चलते पथ में 

ज्योति निरंतर जलती द्वारे !