सोमवार, दिसंबर 31

नए साल की दुआ

बीता बरस जरूर है
बीत न जाये प्यार,
आने वाले साल में
खुशियाँ मिलें हजार ।

जंग लगे न सोच पर
बना रहे उल्लास,
हर पल यहाँ अमोल है
जो भी अपने पास ।

श्वासों में विश्वास हो
उर में सुर संगीत,
कदमों में थिरकन भरी
कहता जीवन गीत ।

सुख की चादर ओढ़ कर
दुख न आये द्वार ,
पलकों के अश्रु बनें
अधरों पर मुस्कान ।

शुक्रवार, दिसंबर 14

घाटियाँ जब खिलखिलायीं


घाटियाँ जब खिलखिलायीं

बह रही थी नदी उर की
बने पत्थर हम अड़े थे,
सामने ही था समुन्दर
नजर फेरे ही खड़े थे !

गा रहा था जब कन्हैया
बांसुरी की धुन सुनी ना,
घाटियाँ जब खिलखिलायीं
राह भी उनकी चुनी ना !

भीगता था जब चमन यह
बंद कमरों में छिपे थे,
चाँद पूनो का बुलाता
नयन स्वप्नों से भरे थे !

सुख पवन शीतल बही जब
चाहतों की तपिश उर में,
स्नेह करुणा वह लुटाता
मांगते थे मन्दिरों में !

आज टूटा भरम सारा
झूमती हर इक दिशा है,
एक से ही नूर बरसे
प्रातः हो चाहे निशा है !
 


मंगलवार, दिसंबर 11

रास्ते में फूल भी थे


रास्ते में फूल भी थे


 कंटकों से बच निकलने
में लगा दी शक्ति सारी,
रास्ते में फूल भी थे
बात यह दिल से भुला दी !

उलझनें जब घेरती थीं
सुलझ जायें प्रार्थना की,
किन्तु खुद ही तो रखा था
चाहतों का बोझ भारी !

नींद सुख की जब मिली थी
स्वप्न नयनों में भरे खुद,
मंजिलें जब पास ही थीं
थामे कहाँ बढ़ते कदम !

हाथ भर ही दूर था वह
स्वर्ग सा जीवन सलोना,
कब भुला पाया अथिर मन
किन्तु शिखरों का बुलावा !

शुक्रवार, दिसंबर 7

अपने जैसा मीत खोजता




अपने जैसा मीत खोजता


ओस कणों से प्यास बुझाते,
जगती के दीवाने देखे,
चकाचौंध पर मिटने वाले
बस नादां परवाने देखे !

जो है, वही उन्हें होना है
अपने जैसा मीत खोजते,
घर है, वहीं उन्हें बसना है
वीरानों में रहे भटकते !

बदल रहा है पल-पल जीवन
जिसमें थिरता कभी न मिलती,
बांट रहा है किरणें सूरज
दिल की लेकिन कली न खिलती !

घुला-मिला सा खारापन ज्यों
तप कर निर्मल नीर त्याग दे,
छुप कर बैठा निजता में ‘पर’
वैरागी वह मिटा राग दे !

 गीत सुरीला गूँज रहा है
कोई चातक श्रवण लगाए,
मतवाला ढूंढें न मिलता
उर में पावन प्रीत जगाए !