सोमवार, अगस्त 31

एक ही है वह

एक ही है वह

फूल नहीं ‘खिलना’ उसका
खग में भी ‘उड़ना’ भाए,
जग का ‘होना’ ही सुंदर है
‘बहना’ ही नीर कहलाए !

खिले ‘वही’ पुष्पों में कोमल
है उड़ान ‘उसके’ ही दम से,
‘उसका’ होना ही जगती का
वही ‘ऊर्जा’ नीर बहाए !

शुक्रवार, अगस्त 28

राखी का उत्सव



राखी का उत्सव

सावन की पूनम जब आती है
साथ चला आता है
बचपन की यादों का एक हुजूम
नन्हे हाथों में बंधी
सुनहरी चमकदार राखियाँ
और मिठाई से भरे मुँह
उपहार पाकर सजल हुए नेत्र
और मध्य में बहती स्नेह की अविरत धारा
एक बार फिर आया है राखी का त्योहार
लेकर शुभभावनाओं का अम्बार
खुशियाँ भरें आपके जीवन में ये नेह भरे धागे
जीवन का हर क्षण सौभाग्य लिए जागे 

गुरुवार, अगस्त 27

मन स्वयं समिधा बन कर जलता


मन स्वयं समिधा बन कर जलता

हर अनुभव है इक गुलाब सा
रंग, सुगंध लुटाकर झरता,
या फिर कोई दीप जला हो
पथ में नव उजास हो भरता !

स्मृतियों में सुवास रह जाती
जीवन सरस हुआ सा पलता,
आभा में पाता  आश्वास
मन स्वयं समिधा बन कर जलता !

नन्हे-नन्हे कदम शिशु के
अंगुली थामे डगमग चलता,
कतरा-कतरा सघन बनेगा
बूंद-बूंद ले मेघ बरसता !


शुक्रवार, अगस्त 21

कैसा है वह


कैसा है वह


एक रेशमी अहसास
कोई रहस्य बुना हुआ सा
प्राचीनतम मन्दिर के खंडहरों सा
सागर की अतल गहराई में छिपे
असंख्य मोतियों की चमक सा
अन्तरिक्ष की अनंतता..और अभेद मौन सा
शब्दों के पार भाव से परे
जैसे नीरव एकांत रात्रि में
कमल ताल पर ज्योत्सना झरे
भोर की पहली किरन सा
जब गगन में चमकते हों तारे भी
पूरब से उगा भी न हो रवि अभी
या सूनी दोपहरिया में जब
भिड़े हों सारे कपाट
सूनी गली में
सांय-सांय करती हो अकेली पवन
दूर पर्वतों पर बने छोटे से मन्दिर में
जब हो चुकी हो दिन की अंतिम पूजा
तब उस सन्नाटे सा
भीतर कोई रहता है..

मंगलवार, अगस्त 18

दिया जो पहले मिला वही

दिया जो पहले मिला वही


जो खाली है वही भरा है
सच ही सच ! न झूठ जरा है,
जो दिखता है.. वही नहीं है
नजर न आता वही वही है !

धरा दौड़ती.. थामे सबको
थिर दिनकर यात्री बनता,
दिया जो पहले मिला वही
मिटा यहाँ जो.. बचा वही !

शब्दों से प्यास नहीं बुझती,
नदिया पर जाना होता है,
पिंजरे से गगन नहीं मिलता
नभ में ही गाना होता है !   

शुक्रवार, अगस्त 14

स्वतन्त्रता दिवस पर

स्वतन्त्रता दिवस पर

भर जाता है भीतर जोश
क्रम बद्ध उठने लगते हैं कदम
मन में दौड़ जाती है
यादों की एक लम्बी कतार
बचपन में गाये देशभक्ति के तराने
चंद्रशेखर आजाद और नेता जी के फसाने
 याद आते हैं हजारों अनाम शहीद  
घुल जाती है लड्डुओं की मिठास
समाती है उज्ज्वल भविष्य की आस
रश्क होता है भारत माँ की लालना पर
पुराणों, वेदों से की संस्कारित पालना पर
आत्मा सहज ही मुस्का उठती है
देख तिरंगे को लहराते  
आओ मिल कर मनाएं
 ‘स्वतन्त्रता दिवस’ हँसते-गाते 

शुक्रवार, अगस्त 7

जीवन की गागर


जीवन की गागर

बड़ा हो कितना भी सूरज का गोला
विशाल हो कितना भी ब्रहमांड
अरबों-खरबों हों सितारे
गहरे हों सागर या ऊँचें हों पर्वत
जीवन उन सबसे बड़ा है
जीवन जो पलता है एक नन्हे पादप में
चींटी की लघु काया में
जीवन जो बन सकता है
मेधा कृष्ण में, प्रज्ञा गार्गी में
या प्रतिभा शंकर में
सोये हुए हम जान नहीं पाते
सपनों में खोये पहचान नहीं पाते
जीवन फिसलता जाता है हाथों से
चेतना जो निकट ही थी
दूर ही रहे जाती है
एक बार फिर जीवन की गगरी
बिन पिए खो जाती है !  

सोमवार, अगस्त 3

जाने किसने निज वैभव से



जाने किसने निज वैभव से


सुख सागर में ले हिचकोले
मनवा धीरे-धीरे डोले,
कहाँ से पायी मस्ती मद की
राज न लेकिन कोई खोले !

नहीं जानता शायद खुद भी
रस की गगरी कौन पिलाये,
रहे ठगा सा, भर कर आंचल
नेह की बरखा में नहलाये !

नजर नहीं मिली अभी जिससे
उसके ही संदेसे आते,
हर लेते हर उलझन उर की
मधुर रागिनी बन गुंजाते !

मन जो बिखरा-बिखरा सा था
उसे समेट पिरोई माला,
जाने किसने निज वैभव से
प्रीत के घूँट पिलाकर पाला !