३१ दिसम्बर २०१५
शाम के पांच बजे हैं. हम अभी-अभी अपने कैम्प में आये हैं.
बेंत की चटाइयों से बनी दीवारों वाला यह कमरा आज की रात भी हमारा निवास स्थान है.
सुबह पांच बजे नींद खुली. बाहर अँधेरा था. वायदे के अनुसार यहाँ काम करने वाला एक
किशोर दो बाल्टी गर्म पानी ले आया. यहाँ काम करने वाले तीनों किशोर पढ़ाई भी कर रहे
हैं, सुबह का काम निपटा कर वे स्कूल चले जाते हैं, दोपहर बाद फिर से आ जाते हैं. साढ़े
सात बजे हम भोजन कक्ष में नाश्ते के लिए पहुंचे. ठीक आठ बजे मायोदिया के लिए रवाना
हुए जिसके आगे ‘हुलनी’ नामक स्थान है. रोइंग मात्र सोलह सौ फीट की ऊँचाई पर है.
मात्र सत्तावन किमी की यात्रा में हमें साढ़े छह हजार फीट की ऊँचाई पर पहुंचना था.
रास्ता मनोरम था किन्तु रोमांचक भी. ऊंचे-ऊंचे पेड़ों से घिरे पहाड़ तथा गहरी
घाटियाँ. नीली-हरी पर्वतों की श्रंखलायें अपनी ओर बुलाती प्रतीत होती थीं. काफी
जगह सड़क टूटी हुई थी, सड़क निर्माण का कार्य चल रहा था. मील के पत्थरों पर तिवारी
गाँव का नाम पढ़कर हमें थोडा अचरज हुआ. पता चला कि वास्तव में ऐसा कोई गाँव नहीं
था, पर एक जगह तिवारी नाम का एक व्यक्ति जो सड़क
निर्माण के कार्य में नियुक्त था, वर्षों तक रहा, उसी के नाम पर उस स्थान
का नाम पड़ गया.
मंजिल पर पहुंच कर बर्फ दिखी जो सड़क के दोनों किनारों पर
जमी थी, पहाड़ों की ढलान पर भी बर्फ थी और वातावरण में ठंड बढ़ गयी थी. हमने स्वेटर,
दस्ताने, टोपी सभी कुछ पहन लिए और फोटोग्राफी करते हुए बर्फ का आनन्द लिया. वापसी
की यात्रा अपेक्षाकृत सरल थी. दोपहर डेढ़ बजे हम वापस लौट आये. दोपहर का भोजन कर हम
पास के बाजार गये. छोटा सा ही बाजार है, जहाँ आवश्यकता का सब सामान मिलता है. बाहर
नव वर्ष की पार्टी की तैयारी हो चुकी है. सुबह ही टेंट लगाने वाले आ गये थे, एक
तरफ शामियाने में बुफे का इंतजाम है. दूसरी तरफ गोल श्वेत टेंट के नीचे कुर्सियां
लगी थीं. दोपहर से ही भोजन बनाने का कार्य भी आरम्भ हो गया है.
कुछ देर बाद श्री पुलू ने हमें बुलाया, उनका परिवार भी आ
चुका था. दो कमरों के मध्य के हॉल में आग जलाने का प्रबंध है. एक टीन की शीट पर
मिट्टी का लेप था उस पर एक लोहे का चूल्हा था जिसमें लकड़ियाँ जलाकर आग सुलगाई जाती
है. चारों तरफ चटाइयाँ तथा कार्पेट बिछे थे. उन्होंने ग्रीन टी के साथ गाजर का
हलवा पेश किया, बाहर भी कुछ मेहमान आ चुके थे. सुबह से आकाश पर छाये बादल अब छंट
गये थे और तारे चमक रहे थे. जैसे प्रकृति भी मेहरबान हो गयी थी, क्योंकि वर्षा
होने का अर्थ था सभी को भीतर जाना पड़ता. श्रीमती पुलू डिस्ट्रिक ऑफिस में
एकाउंटेंट हैं. वह तेजू में रहती हैं. दोनों बच्चों को पिता ही सम्भालते हैं. श्री
पुलू ने कहा, वे हाउस-हसबैंड हैं. उनके कैम्प में देश-विदेश से कई शोध विद्यार्थी
आते हैं. अरुणाचल के जंगलों में जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों का अध्ययन करते
हैं तथा यहाँ के जंगली प्राणियों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी एकत्र करते हैं. वे
स्वयं उनके साथ जंगलों में मीलों पैदल चलकर कैमरे तथा अन्य उपकरण आदि लगाने में
मदद करते हैं. पक्षी प्रेमी भी वहाँ आकर ठहरते हैं. प्रदेश के इतिहास के बारे में
पूछने पर उन्होंने बताया कि अरुणाचल वासी शताब्दियों पूर्व चीन से म्यांमार होते हुए यहाँ आये थे. वे कबीले बनाकर रहते थे.
उन्होंने यह भी बताया कि खुदाई करने पर इस इलाके से जो स्तम्भ प्राप्त हुए हैं उन
पर लिखी भाषा को पढ़ा नहीं जा सका है यहाँ विवाह संबंध मध्यस्थों के द्वारा तय होते
हैं. लड़के वाले लड़की का हाथ मांगने जाते हैं तथा दहेज भी उन्हें ही देना पड़ता है. देखा
जाता है कि पिछली दस पुश्तों में दोनों परिवारों में कोई रक्त संबंध तो नहीं था.
रोइंग में कोई कालेज नहीं है, पढ़ने के लिए तेजू जाना पड़ता है, पर वहाँ भी केवल कला
विषय पढाये जाते हैं. रोचक चर्चा चल रही थी कि भोजन का समय हो गया. पहले उन्होंने
केक काटा, पर वह केक के स्थान पर मिठाई निकली, खोये की मिठाई जिसे केक की तरह
सजाया गया था. जो एगलेस केक मांगने पर हलवाई ने उन्हें थमा दिया था. हमने नये वर्ष
का स्वागत करते हुए वह बर्फी केक खाया. भोजन में केले के फूल व आलू की स्वादिष्ट
सब्जी थी, लाई का सूखा साग बना था. रोटी सफेद व कोमल थी. बाहर की पार्टी का शोर
बढ़ता जा रहा था. अग्नि के पास बैठकर हमने रात्रि भोजन किया, जो मेजबान द्वारा अति
प्रेम से परोसा गया था.
कुछ देर बाद हम सांसद की पार्टी में शामिल होने गये. सभी
आनन्दमग्न थे, पुराने हिंदी फ़िल्मी गीत बज रह थे, पता चला कि मिथि साहब मुहम्मद
रफी के फैन हैं तथा स्वयं भी गाते हैं. महिलाएं डाइनिंग रूम में थीं, मैं वहाँ
पहुंची तो आकर्षक परिधानों में सजी स्त्रियाँ समूह में बैठी थीं, श्रीमती मिथि से
पहले मिल चुकी थी सो उन्होंने सबसे परिचय कराया, लगभग सभी के पति सरकारी नौकरियों
में थे. एक सुंदर गौरवर्णी महिला कहने लगीं उनके समाज में अधेड़ उम्र की महिलाएं
उत्सवों में चावल की बनी मदिरा का पान करती हैं. वे इसके फायदे भी गिनाने लगीं. जब
मैंने कहा बिना पिए ही ये सब प्राप्त हो सकता है तो उन्होंने स्वीकार किया और वहीँ
बैठी दो महिलाओं को दिखाकर कहा, ये दोनों बिलकुल नहीं पीतीं. आधा घंटा वहाँ बिताकर
हम कमरे में आ गये.
आज नये वर्ष का पहला दिन है, सुबह साढ़े पांच बजे नींद खुली. रात को पार्टी
सम्भवतः साढ़े दस-ग्यारह बजे तक चली होगी. ठंड काफी थी और और छोटे बच्चे वाले
परिवार बहुत थे, सो लोग जल्दी चले गये होंगे. सुबह नहा-धोकर आठ बजे नाश्ता करके हम
रोइंग से विदा लेकर रवाना हुए और मार्ग में चार नदियों को पार कर तिनसुकिया में
खरीदारी करते हुए वापस एक बजे घर पहुंच गये. मौसम अच्छा है. धूप खिली है. नये वर्ष
की पहली शाम का स्वागत करने के लिए हम तैयार हैं.
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
बहुत रोचक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबर्फ की चादर ... अच्छी लग रहीं हैं .
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