किसने रोका है पथ अपना
वैसे ही हो जाते हैं हम
जैसा होना सदा चाहते,
फूलों से खिल सकते इस क्षण
नेह सुवास यदि बिखराते !
स्रोत वही है अनुपम अपना
जिससे झरे पराग प्रीत का,
झांकें पल भी अंतर्मन में
मिल जाता है स्वाद जीत का !
किसने रोका है पथ अपना
सिवा हमारी भूलों भ्रम के,
रुक जाते क्यों कदम कहीं पर
फूल बनेंगे मोती श्रम के !
प्रेरक रचना । "फूल बनेंगे मोती श्रम के"
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार प्रदीप जी..
जवाब देंहटाएंहाँ! भूलों और भ्रमों को देख रही हूँ पर .. सुन्दर कहा है .
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जवाब देंहटाएंपरिश्रम कभी व्यर्थ नहीं जाता ...
बहुत सुन्दर रचना ..
अपनी राह हम स्वयं ही रोकते हैं या उससे भ्रमित हो जाते हैं। बहुत सुन्दर और प्रभावी अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंअमृता जी, कविता जी व कैलाश जी, आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंदिल में प्रीत हो तो जीत का एहसास हमेशा रहता है ...
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