गूँज किसी निर्दोष हँसी की
खन-खन करती पायलिया सी
मधुर रुनझुनी घुँघरू वाली,
खिल-खिल करती हँसी बिखरती
ज्यों अंबर से वर्षा होती !
अंतर से फूटे ज्यों झरना
अधरों से बिखरे ज्यों नगमा,
कानों को भी भरे हर्ष से
अंतर को भी गुदगुद करती !
गूँज किसी निर्दोष हँसी की
याद बनी इक दिल में बसती,
कभी भिगोती आँखें बरबस
कभी हृदय को भी नम करती !
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार प्रियंका जी!
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में रविवार 27 जुलाई 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार यशोदा जी!
हटाएंgoonj kisi nirdosh hansi ki? Intriguing!!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंमंत्रमुग्ध करती रचना अभिनंदन आदरणीया ।🙏
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंहंसी बूँद बूँद उतर जाती है मन में ... बहुत सुन्दर भाव ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंवाह वाह वाह ❤️
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंवाह, बेहद सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
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