गुरुवार, फ़रवरी 25

उसका साथ


उसका साथ

एक अदृश्य हाथ सदा थामे रहता  
बढ़ो, तुम आगे बढ़ो !
कोमल स्पर्श उसका, सहला जाता  
छालों को पावों के
 स्मृति का आँचल समेट लेता
जब कभी बिखरते मोती मन के
जो सदा मित्र की तरह साथ दे   
उठा जमीन से बिठा फलक पर दे
एक खोल की तरह
वह छिपाए है अपने भीतर
उन्मुक्त होकर पर्वतों को लाँघ जाओ,
तेज बहती धार में भी या नहाओ !
उससे कुछ भी न बाहर है,
सब कुछ उसको ही जाहिर है
उसके कदमों पर अर्पित कर दो
अपनी मुस्कान की चमक
 धूपबाती बने स्वप्नों की महक
फौलादी इरादे ही आरती का थाल हो
जो सुनाया जाये उसको
अपने दिल की लगन से आगे
न कोई दूसरा हाल हो !

  


2 टिप्‍पणियां:

  1. उसके समक्ष सम्पूर्ण आत्म-समर्पण ही द्वार है परम शांति और उपलब्धि का...बहुत भावपूर्ण और प्रभावी अभिव्यक्ति...

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  2. अलौकिक की पहचान कराती हुई रचना के लिए हार्दिक आभार ।

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