ईद के मौके पर एक इबादत
इक ही अल्लाह, एक
ही रब है,
एको खुदाया, उसी
में सब है !
अंत नहीं उसकी
रहमत का
करें शुक्रिया हर
बरकत का,
जो भी करता अर्चन
उसकी
क्या कहना उसकी
किस्मत का !
जग का रोग लगा बंदे
को
‘नाम’ दवा,
कुछ और नहीं है,
मंजिल वही,
वही है रस्ता
उसके सिवाय ठौर
नहीं है !
सारे जग का जो है
मालिक
छोटे से दिल में
आ रहता,
एक राज है यही
अनोखा
जाने जो वह सुख
से सोता !
तू ही अव्वल तू
ही आखिर
तू अजीम है तू ही
वाहिद,
दे सबूर तू नूर
जहां का
तू ही वाली इस
दुनिया का !
अल कादिर तू है
कबीर भी
तू हमीद तू ही
मजीद भी,
दाता, राम, रहीम, रहमान
अल खालिक खुदा
मेहरबान !
तेरे कदमों में
दम निकले
दिल में एक यही
ख्वाहिश है,
तेरा नाम सदा दिल
में हो
तुझसे ही यह
फरमाइश है !
सच है इश्वर एक है उसकी रहमत भी सब पर बरसती है चाहे कुछ भी कहो ... पर इंसान नहीं समझ पाता ... बांटता रहता है उसे ... देख नहीं पाता उसके रंग बस रंगता है अपने ही रंग में ...
जवाब देंहटाएंउंदर रचना है आपकी ईद के पावस मौके पर ... शान्ति का माहोल हो ...
सही कहा है आपने, इंसान अपनी नजर से ही तो खुदा को भी देखता है, स्वागत व आभार दिगम्बर जी !
जवाब देंहटाएंवाह !! क्या बात है ...
जवाब देंहटाएंमंगलकामनाएं अनीता जी !
स्वागत व आभार सतीश जी !
हटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी !
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