बुधवार, जुलाई 4

राज खुलता जिंदगी का




राज खुलता जिंदगी का


एक उत्सव जिन्दगी का
चल रहा है युग-युगों से,
एक सपना बन्दगी का
पल रहा है युग युगों से !

घट रहा हर पल नया कुछ
किंतु कण भर भी न बदला,
खोजता मन जिस हँसी को
उसने न घर द्वार बदला !

झाँक लेते उर गुहा में
सौंप कर हर इक तमन्ना,
झलक मिलती एक बिसरी
राज खुलता जिंदगी का !

मिट गये वल्लि के पुतले
चंद श्वासों की कहानी,
किंतु जग अब भी वही है
है अमिट यह जिंदगानी !

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 5.7.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3022 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  2. ये उत्सव रो हाल पल है और इसका राचीयता जानता है इस खेल को ... हर पल जो भी घट रहा है हम उसके साक्षी हैं ... हम न भी हों रो भी ये चलता है पल पल ...
    गहरा चिंतन इस रचना में ... सुंदर ...

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ६ जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  4. अप्रतिम अतुलनीय।
    सुंदर भाव रचना अनिता जी गहराई समेटे!!

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