गुरुवार, नवंबर 15

बचपन लौटा था उस पल में



बचपन लौटा था उस पल में



बचपन को ढूँढा यादों में
बाल दिवस पर नगमे गाये,
मन के गलियारों में कितने
साथी-संगी खड़े दिखाए !

रोते हुए किसी बच्चे के
पोँछे आँसू और हँसाया,
नन्ही सी ऊँगली इक थामी
दूर गगन में चाँद दिखाया !

बचपन लौटा था उस पल में
भीतर कोई खेल रहा था,
बाहर मुस्काती थीं आँखें
जीवन लास्य उड़ेल रहा था !

फुटपाथों पर बीते बचपन
इससे बड़ी न पीड़ा होगी,
खिल सकती थी जो बगिया में
शैशव में ही कली तोड़ दी !

होनहार बिरवान सभी हैं
जरा उन्हें सिखलाना होगा,
बचपन खो जाये न अधखिला
मार्ग सही दिखलाना होगा !

तन उर्जित है जोश भरा मन
बन कुम्हार बस गढ़ना भर है,
शिशु के भीतर छुपा युवा है
दो चार कदम बढ़ना भर है !

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