एक रास्ता है मन
मन मानो भूमि का एक टुकड़ा है
उगाने हैं जहाँ उपवन फूलों भरे
जहाँ बिन उगाये उग आते हैं
खर-पतवार
हो सकता है अनजाने में गिराए हों बीज उनके
भी
समय की अंतहीन धारा में
जिस पर पनपे-उजड़े अनंत बार
कितने पादप कितने वृक्ष
पर अब जब कि पता चल गया है
पता उस खुशबू का
जिसकी जड़ छिपी है मन की ही माटी में कहीं
गहरे
तो उपवन सजाना है
उसी को खिलाना है
मन मानो एक मदारी है
जब तक हम उसकी हरकतों पर बजाते हैं तालियाँ
तब तक दिखाता रहता है वह खेल
जिसे मिटाना ही है
उसे बड़ा क्यों करना
जिससे मुक्त होना ही है
उससे मोह क्यों लगाना
जिससे गुजरना भर है
क्यों बनाना उस पथ पर घर
एक रास्ता है मन
जो पार करना है
जब खो जाते हैं सारे अनुभव
तब कोई देखने वाला भी नहीं बचता
नाटक बंद होते ही
घर लौटना होगा
घर आना ही होगा हरेक को
एक यात्रा है मन
जो घर तक ले जाएगी....
जहाँ बिन उगाये उग आते हैं
जवाब देंहटाएंखर-पतवार
हो सकता है अनजाने में गिराए हों बीज उनके
भी
समय की अंतहीन धारा में
फूल खिलाने के लिए प्रयास ज़रूरी है । सुंदर रचना
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति ..मन को छू गयी .आभार . चमन से हमारे जाने के बाद . साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN
जवाब देंहटाएंआपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज (शुक्रवार, ७ जून, २०१३) के ब्लॉग बुलेटिन - घुंघरू पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |
जवाब देंहटाएंतुषार जी, आभार !
जवाब देंहटाएंबेहद खुबसूरत ।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(8-6-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंwah.. ye man bhi na... :)
जवाब देंहटाएंbehtareen Anita jee.
मन ही देवता ,मन ही ईश्वर मन से बड़ा न कोय ,
जवाब देंहटाएंमन उजियारा जब-जब जागे ,जग उजियारा होय!
bahut khub''
जवाब देंहटाएंमन के बगिया में........कब कौन सा फुल खिले .....पता नहीं !
जवाब देंहटाएंLATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !
latest post मंत्री बनू मैं
आपने लिखा....हमने पढ़ा
जवाब देंहटाएंऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 09/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
नाटक बंद होते ही
जवाब देंहटाएंघर लौटना होगा
घर आना ही होगा हरेक को
एक यात्रा है मन
जो घर तक ले जाएगी....
....बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति...आभार
हो सकता है अनजाने में गिराए हों बीज उनके भी
जवाब देंहटाएंसमय की अंतहीन धारा में
जिस पर पनपे-उजड़े अनंत बार
कितने पादप कितने वृक्ष
पर अब जब कि पता चल गया है
पता उस खुशबू का
जिसकी जड़ छिपी है मन की ही माटी में कहीं गहरे
तो उपवन सजाना है
उसी को खिलाना है
बहुत सुन्दर भाव
Bahut Khub...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ...जिस राह रुकना नहीं ..वहाँ घर क्यूँ बनाना ......एक बेतरीन सन्देश ..
जवाब देंहटाएंमन में आये खर पतवार को भी उखाड फेकना जरुरी है.
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता उम्दा प्रस्तुति.
सुंदर रचना के लिए बधाई !
जवाब देंहटाएंआप सभी सुधी पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया..
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