शुक्रवार, अक्तूबर 17

इतनी शिद्दत से जीना होगा



इतनी शिद्दत से जीना होगा

जैसे फूट पडती है कोंपल कोई
सीमेंट की परत को भेदकर
ऊर्जा बही चली आती है जलधार में
चीर कर सीना पर्वतों का
या उमड़-घुमड़ बरसती है बदली सावन की
न कि किसी जलते-बुझते दीप की मानिंद  
या अलसायी सी छिछली नदी की तरह
पड़े रहें और बीत जाये जीवन... का यह क्रम
लिए जाए मृत्यु के द्वार पर
सिर झुकाए खड़े होना पड़े
देवता के चरणों में चढ़ाने लायक
फूल तो बनना ही होगा
इतनी शिद्दत से जीना होगा...


10 टिप्‍पणियां:

  1. कल 19/अक्तूबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  2. सहजता और संतुलन से परिपूर्ण प्रेरक पंक्तियाँ -आभार !

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  3. Bilkul shiddat se jeene ki chAah ho jaaye to yakinana aasan har raah ho jaaye .... Behad sunder rachna ... Badhaayi aapko

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  4. प्रतिभा जी, ओंकार जी, व परी जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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  5. ' देवता के चरणों में चढ़ाने लायक
    फूल तो बनना ही होगा
    इतनी शिद्दत से जीना होगा...'
    - चेतना का संचार किसी भी रूप में हो उसे ऊर्ध्वगामी करने का सच्चा यत्न जीवन धारण करने की पहली शर्त है!

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    1. सही कहा है आपने प्रतिभा जी, चेतना को उर्ध्वगामी बनाना ही तो मनुष्यत्व की पहचान है

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