पंछी उड़ जायेगा इक दिन
कौन रुकेगा यहाँ व कब तक
देर नहीं, टूटेगा पिंजरा,
पंछी उड़ जायेगा इक दिन
कभी न देखा जिसका चेहरा !
उस पंछी को मीत बना ले
वही अमरता को पाता है,
लहर मिटी सागर न मिटता
जीवन सदा बहा करता है !
उससे जिसने लगन लगाई
ठहरा जो पल भर भी उसमें,
अमृत पाया अपने भीतर
मिटा बीज जीया अंकुर में !
खो जायेगा इक पल सब कुछ
अंधकार ही सन्मुख होगा,
बना साक्षी मुस्काता जो
तब भी कोई शेष रहेगा !
खुद से पार खड़ा जो हर पल
उससे ही पहचान बना लें,
तृषा जगे उससे मिलने की
प्रीति बेल सरसे जीवन में !
दिल से लिखी गयी है ..और दिल तक पहुची भी
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार, संजय जी
हटाएंभावपूर्ण रचना....उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@आंधियाँ भी चले और दिया भी जले
नयी पोस्ट@श्री रामदरश मिश्र जी की एक कविता/कंचनलता चतुर्वेदी
आपकी पोस्ट देखी....आभार !
हटाएंखुद से परे होकर उसे पहचानना ही तो सारतत्त्व है पर वही सबसे मुश्किल भी है ।
जवाब देंहटाएंकल 30/अक्तूबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
एक शाश्वत सत्य की बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंमुश्किल को आसान बनाना ही तो साधना है..
जवाब देंहटाएंShashakt abhivyakti ...lajawaab prastuti
जवाब देंहटाएंमुझे तो लगता है असली कसौटी इस दुनिया में रहना है -फिर क्या पता ,सब सुनी-सुनाई बातें .कोई कुच कहता है कोई कुछ .आपकी अभिव्यक्ति बहुत अच्छी है.
जवाब देंहटाएंकैलाश जी व परी जी , स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंप्रतिभा जी, कबीर कहते हैं सुनी सुनाई बात नहीं, यह आंखन देखि बात है...ध्यान ही वह आंख है जहाँ सत्य प्रकटता है...
जवाब देंहटाएंएक सत्य जिसकी प्राप्ति ही जीवन का सार है ...
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