मंगलवार, मई 5

छा गयी जब बदलियाँ

छा गयी जब बदलियाँ


हवा की सरगोशियाँ
पर झुलाती तितलियाँ,
डोलते से शाख-पत्ते
झूमती सी कहकशां !

एक चादर सी बिछी हो
या धरा पर चुनरियाँ ,
पुष्प जिस पर सज रहे हैं
मस्त यूँ नाचे फिजां !

आ गये मौसम सुहाने
छा गयी जब बदलियाँ,
धार अम्बर से गिरी ज्यों
रहमतें बरसें जवां !

गा रहे पंछी मगन हो
छा रही मदहोशियाँ,
हैं कहीं नजदीक ही वह
कह रही खामोशियाँ !

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