बुधवार, मई 27

कुछ भूली-बिसरी यादें

कुछ भूली-बिसरी यादें

लंबा, छरहरा कद, गेहुँआ रंग, फुर्तीला तन और आवाज में युवाओं का सा जोश. ऐसे हैं माथुर अंकल ! जब भी आंटी के साथ बेटी-दामाद से मिलने असम आते उनसे भेंट होती. यह सिलसिला कई वर्षों से चल रहा था. अपने नाती-नातिन के प्रति उनका अति प्रेमपूर्ण व्यवहार, वृद्धा संगिनी का हाथ पकड़ कर सड़क पार कराना, मेहमानों के आने पर रसोईघर में बेटी का हाथ बंटाना, फिर भी घर में ऐसे रहना जैसे हो ही नहीं, ऐसे जैसे हवा रहती है. अगले दिन वे वापस जाने वाले थे, सो उस शाम जब मिलने गयी तो बातों का क्रम उनके अतीत की ओर मोड़ते हुए कुछ सवाल किये. जवाब में उन्होंने कई रोचक संस्मरण सुनाये.
“आप जानती हैं, उस वक्त पूरे सूबे में एक आईजी हुआ करता था, आज तो एक जिले में ही एक से अधिक होते हैं. यह पंडित नेहरू के युग की बात है. आज बच्चे-बच्चे के पास मोबाइल फोन हैं, उस वक्त यदि कोई वीआईपी आने वाला होता था तो कमिश्नर भी घंटों तक खड़े रहकर प्रतीक्षा करने को विवश थे. काफिला कहाँ तक पहुंचा है, जानने का कोई साधन ही नहीं था. मैंने बीएससी की डिग्री लेने के बाद पुलिस के वायरलेस तकनीकी विभाग में वायरलेस ऑपरेशन अधिकारी के पद पर लखनऊ में कार्य करना शुरू किया. मुरादाबाद में हमें सख्त ट्रेनिंग दी गयी, सुबह पांच बजे उठकर परेड करनी होती थी, राइफल चलाना भी सिखाया गया. उस समय उत्तरप्रदेश के पुलिस प्रमुख एक कर्नल थे, उन्होंने हरिद्वार के कुम्भ मेले में पहली बार वायरलेस सेट का इस्तेमाल किया था. ये सेट अमेरिकी सेना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मुम्बई  में छोड़ गयी थी. भारत सरकार ने इसे राज्यों की पुलिस को ले जाने के लिए कहा तो लखनऊ के जोशीजी इन्हें ले आये. बैटरी से चलने वाले इन उपकरणों को अपनी जरूरत के अनुसार बदल  कर हम काम में लाने लगे.
मैंने पहली बार इनका प्रयोग इलाहबाद के कुम्भ मेले में किया. उस साल वहाँ एक भयानक हादसा हुआ था. वहाँ के स्थानीय निकाय तथा पुलिस ने मेले के लिए काफी प्रबंध किये थे लेकिन होनी को कुछ और मंजूर था. संगम तक पहुंचने के लिए एक ऊंचा टीला पार करना पड़ता था, जिसे मिट्टी वगैरह डालकर ठीकठाक किया गया था. रात को वर्षा हुई व मुँह अँधेरे स्नानार्थियों की भीड़ आनी शुरू हो गयी. टीले की ऊंचाई पर लोग आराम से पहुंच रहे थे पर उतरते समय फिसलन इतनी ज्यादा हो गयी कि लोग गिरते-पड़ते नीचे पहुंचने लगे. पीछे आने वालों को इसकी खबर नहीं थी, भीड़ बढती जा रही थी, लोग कुचले जा रहे थे. हमने टावर से यह हादसा देखा, वायरलेस सेट का प्रयोग कर जब तक हम लोगों को सचेत कर पाते कई सौ कीमती जानें जा चुकी थीं. कतार में रखे सफेद चादरों में लिपटे शवों का वह दृश्य आज भी कंपा जाता है.”
हम सब भी यह सुनकर सन्न रह गये थे. अंकल थोड़ा प्रकृतिस्थ हुए तो आगे कहने लगे,
“सन् बासठ के चीनी आक्रमण के वक्त मुझे मुरादाबाद भेजा गया, जहाँ से हमारी यूनिट उत्तरकाशी, जोशीमठ तथा आगे गंगोत्री तक गयी. बर्फ गिरने से रास्ते बंद हो गये थे. सेना से भी आगे रहकर दुश्मन के हमले को झेला. वायरलेस सिस्टम के द्वारा ही संदेश भेजना सम्भव हो सका था.”
हम सभी उनकी बातें बड़े आश्चर्य के साथ सुन रहे थे. आगे उन्होंने बताया, “अगले कुछ वर्षों तक मेरी ड्यटी अति विशिष्ट अधिकारियों के साथ लगी. कुछ दिन खुफिया विभाग में काम किया और संचार मंत्रालय में भी. जब कभी वीआइपी आते थे, मिनट-मिनट बड़ा कीमती होता था, उन्हें सुरक्षित लाने के लिए कितनी बार रिहर्सल होती थी. उनके सामने खुर्श्चेव आये, ड्यूक ऑफ़ एडिनबरा आये और दलाई लामा, राजेन्द्र प्रसाद के साथ भी उनकी ड्यूटी लगी थी. नेहरू जी जब लखनऊ आते तो हिंडन ब्रिज पर काफिला रोककर दिल्ली पुलिस लौट जाती थी. फिर यूपी पुलिस की जिम्मेदारी थी. नेहरू जी का एक रोचक किस्सा उन्होंने बताया, एक बार लोग उनके दर्शनों के इंतजार में खड़े-खड़े थक गये थे, जब वे पहुँचे, उन्होंने गाड़ी रुकवाई और लोगों से मिलने लगे, सारी सुरक्षा धरी रह गयी, किसी ने लड्डू दिया तो उन्होंने खा लिया.
माथुर अंकल के पास और भी मजेदार किस्से थे, कैसे सुल्ताना डाकू को पकड़ने ब्रिटेन से एक कैदी आया था. एक बार वह खुद यूनिट के साथ मान सिंह को पकड़ने गये थे. कहने को तो पुलिस तन्त्र था पर कई तरह के काम उन्होंने किये. माइक, जेनरेटर भी सुधारे. उनके काम से अफसर बहत खुश थे, तरक्की भी मिलती गयी. उन्हें पुलिस पदक भी मिला, पड़ोसी ने अख़बार पढ़ा और उन्हें आकर यह खबर सुनाई. राजभवन में शानदार आयोजन हुआ था.
हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की बात कहते समय उनकी आँखें चमक रही थीं, “लखनऊ की पुलिस लाइन में रहते समय सभी मिलजुलकर सब त्यौहार मनाते थे. जफर साहब कीर्तन में शामिल होते थे, ईद व दीवाली सब मिल कर मनाते थे.” शाम काफी हो गयी थी. सब से विदा लेकर हम घर आये तो मन में वह स्मृतियाँ ताजा थीं. आज उन्हें कागज पर उतार दिया है, ताकि कुछ और लोग भी पढ़कर भारत के अतीत से रूबरू हो सकें औत माथुर अंकल जैसे व्यक्तित्व से भी.


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