शुक्रवार, अक्तूबर 14

जो भी राह दिखाने आया

जो भी राह दिखाने आया

एक मुखौटा ओढ़ा सुंदर
चेहरे पर मुस्कान पहन ली,
दिल में चाहे आग सुलगती  
शीतल सी पहचान ओढ़ ली !

हालचाल सब ठीकठाक है
जग को जब विश्वास दिलाया,
 मदमाती जीवन की राह है
दिल ने खुद को भी समझाया !  

जो भी राह दिखाने आया
उसको अपना दुश्मन माने,
छलता जो मन पहले जग को
खुद को ही बंधन में डाले !

मूल छिपा ही रहता भीतर
माया के पर्दे पर पर्दे,
स्वप्नों की इक आड़ खड़ी है
उम्मीदों के जाल बड़े ! 

3 टिप्‍पणियां:

  1. मूल छिपा ही रहता भीतर
    माया के पर्दे पर पर्दे,
    स्वप्नों की इक आड़ खड़ी है
    उम्मीदों के जाल बड़े !
    सुंदर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  2. सावन जी व ज्योति जी, स्वागत व आभार !

    जवाब देंहटाएं