चिनार की छाँव में -भाग चार
बेताब वैली में एक दोपहर
पहलगाम में आज हमारा दूसरा दिन है। इंटरनेट पर इसके इतिहास के बारे में कुछ रोचक जानकारी मिली। 14वीं शताब्दी तक पहलगाम और आसपास का क्षेत्र हिंदू शासकों के नियंत्रण में था। 1346 में शम्सुद्दीन ने इस क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया और उसके राजवंश ने मुगलों के आक्रमण तक इस क्षेत्र पर शासन किया। 1586 में पहलगाम और कश्मीर का पूरा क्षेत्र अकबर के नियंत्रण में आ गया। 18वीं सदी में शासक अहमद शाह दुर्रानी के आक्रमण के बाद यह अफगानिस्तान का हिस्सा बन गया। 19वीं शताब्दी की शुरुआत में, रणजीत सिंह ने इसे अपने सिख राजवंश में मिला लिया, लेकिन कुछ दशकों बाद अंग्रेजों ने इस पर नियंत्रण कर लिया।किंतु पहलगाम पर अंग्रेजों का अधिक समय तक अधिकार नहीं रहा।19वीं शताब्दी में ही उन्होंने पहलगाम के साथ-साथ कश्मीर को 7.5 मिलियन रुपये में गुलाब सिंह को बेच दिया, जो कश्मीर के राजा बने। इस संधि के अनुसार कश्मीर और पहलगाम के क्षेत्र ब्रिटिश शासन के दौरान स्वतंत्र राज्य के रूप में बने रहे, और भारत के विभाजन तक ऐसा ही रहा। आजादी के समय हरिसिंह यहाँ के राजा थे। सीमापार से आये कबालियों के आक्रमण से इसकी रक्षा के बाद से यह स्वतंत्र भारत का हिस्सा बन गया।
आज सुबह छह बजे से पहले ही नींद खुल गई थी। पहलगाम की सुप्रसिद्ध अरु वैली, बेताब वैली और चंदनवाड़ी देखने के लिए सभी उत्सुक हैं। पहले होटल के आसपास की जगहें घूमकर देखी, साढ़े दस बजे ड्राइवर आ गया, उसने बस स्टैंड तक ले जाकर ट्रेवलर रोक दी, जब तक लोकल गाड़ी आती, हमने निकट स्थित गौरी-शंकर मंदिर में दर्शन करने का निर्णय लिया। एक-एक कर सभी ने शिव जी को जल अर्पित किया। पुजारी जी से प्रसाद लिया। घर से इतनी दूर कश्मीर में छोटे पर इतने सुंदर मंदिर में पूजा करने का अवसर मिलेगा, यह अप्रत्याशित था।निकट ही एक गुरुद्वारा भी था, जिसके बाहर एक पाठी धूप का आनंद ले रहे थे, हमारे पास समय नहीं था, सो दूर से ही मत्था टेककर हम वाहन में बैठ गये।
पहलगाम से लगभग १२ मील दूर स्थित अरु नदी के किनारे स्थित अरु घाटी अपनी सुंदरता के लिए जानी जाती है, जहॉं हरे-भरे घास के विशाल मैदान, अनेक झीलें, बर्फ से ढके पर्वत और आकाश को छूते देवदार के वृक्षों कीलंबी क़तारें पर्यटकों का मन मोह लेती हैं।सर्दियों में जब अरु में भारी बर्फबारी होती है, तो स्कीइंग और हेली स्कीइंग का अभ्यास किया जाता है। हमने काफ़ी समय वहाँ घूमते हुए और प्रकृति के नज़ारों को निहारते, फ़ोटोग्राफ़ी करते हुए बिताया। कुछ व्यापारी यहाँ भी अपने सामान बेच रहे थे।घोड़े और खच्चर वाले भी दूरस्थ बर्फ से ढके स्थानों तक ले जाने का आग्रह कर रहे थे, किंतु हमने अपने पैरों पर भरोसा करना ही बेहतर समझा। एक घंटा वहाँ बिताकर हम बेताब वैली के लिए निकल पड़े।
लिद्दर नदी के किनारे स्थित “बेताब वैली” में बेताब नाम की एक फ़िल्म की शूटिंग हुई थी, इस घाटी का मूल नाम हजन घाटी है। यह पहलगाम से 15 किमी दूर स्थित है।यह अमरनाथ यात्रा के रास्ते में पहलगाम व चंदनवाड़ी के मध्य में स्थित है। यह घाटी भी बर्फ से पर्वतों और घने वनों से घिरी हुई है, जहां से हिमालय का मनोरम दृश्य दिखाई देता है। हरे-भरे घास के मैदानों में बहती हुई नदी और पृष्ठभूमि में बर्फ से ढके पहाड़ों के कारण यह पर्यटकों को आकर्षित करती है। घाटी देवदार के पेड़ों के घने जंगल से ढकी हुई और रंग-बिरंगे फूलों से सुसज्जित है। हम एक जगह नदी तक उतर कर गये और शीतल जल का स्पर्श किया। कश्मीर की पोशाक पहन कर आने यात्री तस्वीरें खिंचवा रहे थे, हरी पृष्ठभूमि में टंगे लाल, गुलाबी शोख़ रेशमी रंग के वस्त्र मन को अत्यन्त मोह रहे थे।
इसके बाद ड्राइवर हमें चंदनवाड़ी ले गया। लिद्दर नदी के पास पहलगाम से लगभग 16 किलोमीटर दूर स्थित एक और अनोखे पर्यटन स्थल चंदन वाड़ी की ऊँचाई २, ८९५ मीटर है। चंदनवारी नवंबर से मई तक बर्फ से ढका रहता है। यहाँ से अमरनाथ की यात्रा आरम्भ होती है।अमरनाथ यात्रा के समय पहली रात तीर्थयात्री यहीं बिताते हैं। यहाँ रात्रि निवास के लिए कैंप लगाए जाते हैं।यह यात्रा जून में शुरू होती है और अगस्त में समाप्त होती है।यहाँ से ग्यारह किलोमीटर दूर प्रसिद्ध शेषनाग झील है, जिससे आगे जाकर ‘पंचतरणी’ अमरनाथ यात्रा का अंतिम पड़ाव है। शाम के साढ़े चार बजे थे जब हम वापस चिनार रिजॉर्ट लौटे। गर्म कहवा पीकर ऐसा लगा जैसे काफ़ी थकान दूर हो गई।
अत्यंत सहज सरल सुंदर संस्मरण।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २८ नवम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी !
हटाएंजानकारी से परिपूर्ण... शानदार
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार संदीप जी !
हटाएंप्रकृति क मनोहर रूप को सजीवता देता अत्यंत सुन्दर सृजन । सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार मीना जी !
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