कौन है वह
दिल की गहराई जो जाने
उसके सम्मुख ही दिल खोलें
जन्मों का जो मीत पुराना
मन की बात उसे ही बोलें
दूर तलक जो साथ चलेगा
पथ में उसके संग ही डोलें
काँटों को जो फूल बना दे
संग उसके ही स्वप्न पिरो लें
अंतर वीणा को जो गा दे
उसके ही नयनों को तोलें
सम्भव सब है इस चोले में
मानव हो हर दुःख को धो लें
जो भी इर्द - गिर्द फैला है
उत्सव बनकर उसमें खो लें
nice presentation .nice post .
जवाब देंहटाएंदिल की गहराई जो जाने
जवाब देंहटाएंउसके सम्मुख ही दिल खोलें
NOT ONLY THIS IS RIGHT BUT ALSO THIS IS MUST .
जो भी इर्द - गिर्द फैला है
जवाब देंहटाएंउत्सव बनकर उसमें खो लें
....वाह! खुश रहने का यही मंत्र है।
सहजता और गहनता का अद्भुत मिश्रण है ये रचना ....!!बहुत सुंदर ....!!
जवाब देंहटाएंवाह....बहुत सुंदर....खुशी अपने आस-पास ही डोला करती है बस उसे खोज सके वो नजर चाहिए ...
जवाब देंहटाएंअच्छा है.....................
जवाब देंहटाएंवाह....बहुत सुंदर.रचना...
जवाब देंहटाएंकस्तूरी कुण्डल बसै मृग ढूँढे वन माहि...। गहरे भाव हैं कविता में ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावपूर्ण रचना ...
जवाब देंहटाएंआपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के ब्लॉग बुलेटिन - आराधना पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएं'जो भी इर्द - गिर्द फैला है
जवाब देंहटाएंउत्सव बनकर उसमें खो लें'
- वाह,क्या बात है !
शालिनी जी, अनुपमा जी, प्रतिभा जी, रश्मि जी, अदिति जी, दिगम्बर जी, तुषार जी, गिरिजा जी, अनिल जी, देवेन्द्र जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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