गुरुवार, जून 26

अब कैसी दूरी अंतर में

अब कैसी दूरी अंतर में


जान लिया जब भेद हृदय का 

अब कैसी दूरी अंतर में, 

अंतरिक्ष में ग्रह घूमें ज्यों 

चंद्र-सूर्य अपने अंबर में !


उड़ना चाहें जितना उड़ लें 

भीतर बसा आकाश अनंत, 

 मिलते ही जिससे हो जाता 

हर पीड़ा हर रंज  का अंत !


जीवन इक उपहार अनोखा 

तन, मन, मेधा वाहक जिसके,

श्वास-श्वास में वही गा रहा 

वही छिपा है चेतनता में !


10 टिप्‍पणियां:

  1. अत्यन्त सुंदर छटा मनभावन मन के भीतर ही मन में समाए है ।

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 28 जून 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  3. बहुत सुंदर अनिता जी. आत्मज्ञान के उल्लास में खोये ह्रदय की सरस अभिव्यक्ति 🙏

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  4. इस उल्लास में सम्मिलित होने के लिए स्वागत व आभार रेणु जी !

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