शाम अब ढलने लगी है
आसमां से चाँद झांके
इक चमकती गेंद जैसे रोशनी की
नील अम्बर पर खिला हो
पीतवर्णी पुष्प कोई...
गुलमोहर की पत्तियों से
देखता है खिलखिलाकर
तक रही है इस धरा से
इक कमिलिनी मुस्कुरा कर !
मौन में संवाद घटता
प्रकृति से उल्लास झरता
शाम अब ढलने लगी है
पंछियों का झुण्ड लौटे
कूजते अंतिम स्वरों को
रात्रि की गरिमा लपेटे
तिमिर बढता जा रहा है
कालिमा के पंख खोले
नीड़ में विश्राम पाकर
फिर जगेंगे कल सुबह वे
सिमट अपने शावकों संग
आँख मूंदे सो गए जो
चहचहाते गीत गाते
दिवस भर जो उड़ रहे थे !
कोमल ...सुन्दर भाव ...बहुत उज्जवल सुन्दर रचना ...अनीता जी ...
जवाब देंहटाएंअनुपमा जी, आभार!
हटाएंनीड़ में विश्राम पाकर
जवाब देंहटाएंफिर जगेंगे कल सुबह वे
सिमट अपने शावकों संग
आँख मूंदे सो गए जो
चहचहाते गीत गाते
दिवस भर जो उड़ रहे थे !
हमेशा की तरह ये पोस्ट भी बेह्तरीन है
कुछ लाइने दिल के बडे करीब से गुज़र गई....!!!
संजय जी, शुक्रिया..
हटाएंबहुत प्यारी लगी कविता.
जवाब देंहटाएंस्वागत है निहार जी..
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंlatest post हिन्दू आराध्यों की आलोचना
latest post धर्म क्या है ?
कालीपद जी, आभार!
हटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (30-3-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
वन्दना जी, बहुत बहुत आभार!
हटाएंभाव संसिक्त प्रवाह मय रचना ,बेहद का फ्लो औत तारल्य लिए है यह कविता -नुमा गीत जिसमें स्वर ताल भी है .
जवाब देंहटाएंवीरू भाई, आभार इन सुंदर शब्दों के लिए..
हटाएंबहुत प्यारी रचना..........
जवाब देंहटाएंसंध्या जी, शुक्रिया..
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंप्यारी कविता
जवाब देंहटाएंकुसुमेश जी, आभार!
हटाएंयशवंत जी, स्वागतम..
जवाब देंहटाएं.सुन्दर भाव .प्यारी कविता
जवाब देंहटाएंप्राकृति के अध्बुश रंगों को शब्दों में उतार दिया आपने ... अनुपम दृश्य खींचा है ...
जवाब देंहटाएंकोमल भाव लिये सुंदर ओजपूर्ण गीत.
जवाब देंहटाएंप्रतिभा जी, माहेश्वरीजी, दिगम्बर जी, रचना जी. आप सभी का स्वागत व बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंsaras, bhav prvaah, ateev manohaari.
जवाब देंहटाएंप्रकृति और दर्शन का अद्भुत तालमेल देखने को मिला आपकी कविताओं में। ..सुखद रहे ये पल।
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