शनिवार, मार्च 3

आनंद को स्वप्न ही जाने



आनंद को स्वप्न ही जाने


जब तक हाथों में शक्ति है
जब तक इन कदमों में बल है,
मन-बुद्धि जब तक सक्षम हैं
तब तक ही समझें कि हम हैं !

जब तक श्वासें है इस तन में
जब तक टिकी है आशा मन में,
तब तक ही जीवित है मानव
वरना क्या रखा जीवन में !

श्वास में कम्पन न होता हो
मन स्वार्थ में न रोता हो,
बुद्धि सबको निज ही माने
स्वहित, परहित में खोता हो !

जब तक स्व केंद्रित स्वयं पर
तब तक दुःख से मुक्ति कहाँ है,
ज्यों-ज्यों स्व विस्तृत होता है
अंतर का बंधन भी कहाँ है !

जब तक खुद को नश्वर जाना
अविनाशी शाश्वत न माने,
तब तक भय के वश में मानव
आनंद को स्वप्न ही जाने !

9 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन दर्शन समझाती सुन्दर रचना...
    आभार अनीता जी...

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  2. जब तक हाथों में शक्ति है
    जब तक इन कदमों में बल है,
    मन-बुद्धि जब तक सक्षम हैं
    तब तक ही समझें कि हम हैं !

    bilkul sach likha aapne, jeevan ke ytharth ke karib hai ye.

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  3. मन-बुद्धि जब तक सक्षम हैं
    तब तक ही समझें कि हम हैं !
    bahut sunder baat ...!!

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  4. बहुत सुंदर ॥शाश्वत सती को कहती हुई

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  5. जब तक हाथों में शक्ति है
    जब तक इन कदमों में बल है,
    मन-बुद्धि जब तक सक्षम हैं
    तब तक ही समझें कि हम हैं !


    जब तक खुद को नश्वर जाना
    अविनाशी शाश्वत न माने,
    तब तक भय के वश में मानव
    आनंद को स्वप्न ही जाने !

    एकदम सही....

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  6. आप सभी का आभार... देखते ही देखते समय हाथों से निकल जाता है और हम स्वयं को जीवन के अंतिम पडाव पर पाते हैं या तो किसी अस्वस्थता के कारण तन अक्षम हो जाता है, यही भाव थे जब मैंने यह कविता लिखी थी, जब तक बल है हर एक क्षण को शिद्धत से जीना है..

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  7. बहुत खुबसूरत लगी पोस्ट।

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  8. आपके विचार ही पथ प्रदर्शक बन जाता है..आपका आभार..

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