जादू प्रेम का
उसका जाना एक नेमत बन गया
याद का बादल बरसा
हुलसा तन, मन भीग गया !
बेरुखी उसकी बनी इनायत ऐसे
खुद को परखा
दिखे ऐब भीतर कैसे - कैसे !
उससे दूरी मिलन का सबब बनी
धुलीं आँखें अश्रुओं से
भीतर रोशनी छनी !
उसकी बातें चुभीं जब तीर सी
झाँका नयन में उसके
तस्वीर अपनी दिखी !
उसकी बातें चुभीं जब तीर सी
जवाब देंहटाएंझाँका नयन में उसके
तस्वीर अपनी दिखी !
..........kamaal hai ji, wah !!!!!!!!!!!!
bahut sundar prastuti.badhai.ये वंशवाद नहीं है क्या?
जवाब देंहटाएंअच्छा है ।
जवाब देंहटाएंयही तो हैं प्रेम के करिश्मे....
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव अनीता जी
सादर.
प्रेम जादू ही तो है,और वो सिर चढ़ कर बोलता है.
जवाब देंहटाएंगहरी बात करती रचना ....!!
जवाब देंहटाएंआपकी कविता कोई जादुगरी नहीं वास्तविक जीवन की सक्षम पुनर्रचना है सर्जनात्मक ऊर्जा की सक्रियता है ।
जवाब देंहटाएंसुभानाल्लाह बहुत खूब कई बार चोट खाकर ही आदमी संभालता है ।
जवाब देंहटाएंउसकी बातें चुभीं जब तीर सी
जवाब देंहटाएंझाँका नयन में उसके
तस्वीर अपनी दिखी !
प्रेम का अज़ब गज़ब रूप है यह भी , जादुई ही !
आप सभी सुधी पाठकों का तहे दिल से आभार !
जवाब देंहटाएं