अपनी अपनी जेल
कोई जेलर बनता है अपनी इच्छा से
जेल में वह भी आता है
और कैदी को लाया जाता है उसकी इच्छा के विरुद्ध
ऐसा लगता है ऊपर-ऊपर से,
पर कैदी भी अनजाने में
क्या इच्छा नहीं कर रहा था इसी की....
जेलर आनन्दित है
ऐसा दिखता है ऊपर-ऊपर से
पर उसके दुःख भी वैसे ही हैं
मात्रा कम या अधिक हो सकती है
दुःख सताते हैं उसे भी
आखिर कैदी है वह भी
एक बड़ी जेल का, जिसका जेलर दिखाई नहीं देता
जो तभी मुक्त करता है
जब कैदी उसके जैसा बन जाता है
क्यों कि वह जेल बनायी है उसने स्वयं ही....
्बेहद गहन और सटीक रचना।
जवाब देंहटाएंआभार, वन्दना जी !
हटाएंगहन अभिव्यक्ति .... जो जेलर दिखाई नहीं देता उसके नियम बहुत कठोर हैं ..
जवाब देंहटाएंसंगीता जी, उसके नियम तो बहुत सरल हैं पर मानव कठिन बना लेता है.
हटाएंबहुत सुन्दर जेलर और कैदी.......गहन अभिव्यक्ति...शानदार पोस्ट।
जवाब देंहटाएंआभार, इमरान.
हटाएंगहरी बात कह डाली आपने..
जवाब देंहटाएंजेलर की तो सजा का समय भी नियत नहीं...रिहाई जाने कब हो...
सुन्दर भाव..
जेलर की सजा उसके खुद के हाथ में है जिस क्षण वह जाग जाये जेल से बाहर हो सकता है...आभार विद्या जी.
हटाएंएक बड़ी जेल जिसका जेलर दिखाई न देता
जवाब देंहटाएंगहन आध्यात्मिक अभिव्यक्ति!
मनोज जी, वह बड़ी जेल वास्तव में हमारा मन ही तो है, आभार !
जवाब देंहटाएंbehad gahri.....bahut achchi lagi.
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