है बेबूझ बात यह दिल की
मदिर चाँदनी बिखरी जैसे
गुनगुन कोई गीत सुनाता,
तेरी यादों में मन खोया
काल का पंछी भी थम जाता !
लहरें उठतीं गिरतीं जैसे
बहे ऊर्जा का इक दरिया,
भाव मधुर वंशी बन गूंजे
मन चादर में पड़े लहरिया !
थिर कदमों में नृत्य समाये
मूक हुआ कोई हँसता जाये,
तृषित अधर मन इक प्याला हो
एक हाथ कोई ताल बजाए !
है बेबूझ बात यह दिल की
एक अनोखी सी महफिल की,
आँखों आँखों में ही घटती
तय होती दूरी मंजिल की !
वाह-
जवाब देंहटाएंअनोखे अनुभव को भी कितनी सरलता से आप शब्द दे देती हैं..मैं चकित हो जाती हूँ..
जवाब देंहटाएंअमृता जी, जो चकित करता है वह परमात्मा है और जो चकित होता है वह भी..वही लिखवाता है और वही पढवाता है
हटाएंहै बेबूझ बात यह दिल की
जवाब देंहटाएंएक अनोखी सी महफिल की,
आँखों आँखों में ही घटती
तय होती दूरी मंजिल की !bahot sunder likhi hain.....
थिर कदमों में नृत्य समाये
जवाब देंहटाएंमूक हुआ कोई हँसता जाये,
तृषित अधर मन इक प्याला हो
एक हाथ कोई ताल बजाए !
अति उत्तम भाव संयोजन्।
है बेबूझ बात यह दिल की............
जवाब देंहटाएंलहरें उठतीं गिरतीं जैसे
बहे ऊर्जा का इक दरिया,
भाव मधुर वंशी बन गूंजे
मन चादर में पड़े लहरिया !
अनबूझे से भाव....!!
bahut badhiya sarthak prastuti.
जवाब देंहटाएंयह चिंगारी मज़हब की.
सुन्दर प्रस्तुति!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर है पोस्ट।
जवाब देंहटाएंलहरें उठतीं गिरतीं जैसे
जवाब देंहटाएंबहे ऊर्जा का इक दरिया,
भाव मधुर वंशी बन गूंजे
मन चादर में पड़े लहरिया !
....बहुत सुंदर अहसास...आभार
आप सभी का बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएं