शनिवार, अक्तूबर 13

नहीं अचानक मरता कोई


नहीं अचानक मरता कोई


नव अंकुर ने खोली पलकें
घटा मरण जिस घड़ी बीज का,
अंकुर भी तब लुप्त हुआ था
अस्तित्त्व में आया पौधा !

मृत्यु हुई जब उस पौधे की
वृक्ष बना नव पल्लव न्यारे,
यौवन जब वृक्ष पर छाया
कलिकाएँ, पुष्प तब धारे !

किन्तु काल न थमता पल भर
वृक्ष को भी इक दिन जाना है,
देकर बीज जहां को अपना
पुनः धरा पर ही आना है !

नहीं अचानक मरता कोई
जीवन मृत्यु साथ गुंथे हैं,
पल-पल नव जीवन मिलता है
पल-पल हम थोड़ा मरते हैं !

शिशु गया, बालक जन्मा था
यौवन आता, गया किशोर
यौवन भी मृत हो जायेगा
मानव हो जाता जब प्रौढ़ !

वृद्ध को जन्म मिलेगा जिस पल
कहीं प्रौढता खो जायेगी,
नहीं टिकेगी वृद्धावस्था
इक दिन वह भी सो जायेगी

पुनः शिशु बन जग में आये
एक चक्र चलता ही रहता,
युगों-युगों से आते जाते
जीवन का झरना यह बहता !

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत उम्दा रचना है बधाई स्वीकारें।

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  2. किन्तु काल न थमता पल भर
    वृक्ष को भी इक दिन जाना है,
    देकर बीज जहां को अपना
    पुनः धरा पर ही आना है !


    बस यही जीवन चक्र है ... सुंदर प्रस्तुति

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  3. जीवन चक्र का सुन्दर चित्रण...

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  4. यह जीवन है ....
    आभार अच्छी रचना के लिए !

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  5. शाश्वत जिंदगियां समाप्त होती है जीवन चलता रहता है
    अच्छी रचना

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  6. नहीं अचानक मरता कोई
    जीवन मृत्यु साथ गुंथे हैं,
    पल-पल नव जीवन मिलता है
    पल-पल हम थोड़ा मरते हैं !

    जीवन शुरू होने के साथ ही मरण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है....पल पल..!

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  7. जीवन चक्र ऐसे ही निर्बाध चलता रहता है.

    सुंदर गीत.

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  8. बहुत सुन्दर.....
    जन्मों का फेरा है ये...चलता जाए निरंतर..
    सादर
    अनु

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  9. सृष्टि-चक्र यूँ ही चलता रहता है.जो भी है बस यही एक पल है . अच्छी लगी कविता.

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  10. बहुत गहन और सत्य है विपरीत छुपा हुआ है सबमे.....हैट्स ऑफ इसके लिए।

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  11. इमरान, अमृता जी, अनु जी, रचना जी, पूनम जी, रचना जी, पूनम जी, सतीश जी, राजेश जी, माहेश्वरीजी, अप सभी सुधीजनों का स्वागत व आभार !

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