दिल को ही अम्बर कर लें
शब्दों में वह नहीं समाये
दिल को ही अम्बर कर लें,
कैसे जग को उसे दिखाएँ
रोम-रोम में जो भर लें !
गाए रुन-झुन, रिन-झिन, निशदिन
हँसता हिम शिखरों के जैसा,
रत्ती भर भी जगह न छोड़े
बसता पुष्प में सौरभ जैसा !
रग-रग रेशा-रेशा पुलकित
कण-कण गीत उसी के गए,
रिसता मधु सागर के जैसा
श्वास-श्वास में वही समाये !
मन का नीरव कोना ,जिसमें गूँजे तेरा मौन
जवाब देंहटाएंतहखानों में धूप बिखेरे मेरा अपना कौन ...
कुछ ऐसे ही ,बहुत ही गहरे भाव सुन्दर कविता ।
वाह ! गिरिजा जी, बहुत सुंदर पंक्तियाँ..पूरी कविता लिखें,पढना चाहूंगी
हटाएंकल 17/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
शब्दों में वह नहीं समाये, दिल को अम्बर कर लें...वाह!
जवाब देंहटाएंचाँद-सितारे, धरती, सूरज, सबको अन्दर कर लें।
बहुत खूब ! सही कहा देवेन्द्रजी..
हटाएंसार्थक विचार लिए. सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ,बेहद सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण ... प्रेम में पगी सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंवाह, खूबसूरत,लाजवाब रचना.
जवाब देंहटाएंशब्दों में वह नहीं समाये
जवाब देंहटाएंदिल को ही अम्बर कर लें,
....वाह! बहुत उत्कृष्ट और सटीक अभिव्यक्ति...
दिल को ही अम्बर ………बहुत सुन्दर |
जवाब देंहटाएंमाहेश्वरी जी, सुषमा जी,वीरू भाई, कैलाश जी, मदन जी, इमरान, दिगम्बर जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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