गुरुवार, जून 18

वही एक है

वही एक है



एक मधुर धुन वंशी की ज्यों
एक लहर अठखेली करती,
एक पवन वासन्ती बहकी
एक किरण कलियों संग हँसती !

एक अश्रु चरणों पर पावन
एक दृष्टि हर ले जो पीड़ा,
 एक परस पारस का जैसे
एक शिशु करता हो क्रीड़ा !

एक परम विश्राम अनूठा
एक दृश्य अभिराम सजा हो,
एक स्वप्न युगों तक चलता  
एक महावर लाल रचा हो !

एक मन्त्र गूँजे अविराम
एक गीत लहरों ने गाया,
एक निशा सोयी सागर पर
एक उषा की स्वर्णिम काया !

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