बुधवार, जून 17

मंजिल और रस्ता


मंजिल और रस्ता 

लगता है यूँ सफर की.. आ गयी हो मंजिल
या यह भी इक ख्याल ही निकलेगा दिलों का

यूँ ही चले थे उम्र भर मंजिल पे खड़े थे
अब लौट के पहुंचे जहाँ वह अपना ही घर था

रस्ते में खो गयी गठरी जो ले चले
राही भी न बचा रस्ता भी खो गया सा 

अब एक ही रहा है चुप सी ही इक लगाये
कहने को कुछ नहीं है यूँ मौन बह गया 

2 टिप्‍पणियां:

  1. यूँ ही चले थे उम्र भर मंजिल पे खड़े थे
    अब लौट के पहुंचे जहाँ वह अपना ही घर था

    खूबसूरत..........

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  2. यूँ ही चले थे उम्र भर मंजिल पे खड़े थे
    अब लौट के पहुंचे जहाँ वह अपना ही घर था
    अच्छी ले ये पंक्ति सबसे ज्यादा

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