गुरुवार, जुलाई 23

नया नया सा लगा था सूरज


नया नया सा लगा था सूरज

जाने कितने युग बीते हैं
जाने कबसे जलता सूरज,
आज सुबह जब ताका उसको
नया नया सा लगा था सूरज !

क्या जाने किस बीते युग में
गंगा की लहरों संग खेले,
आज अंजुरि में भर छूआ
याद आ गये लाखों मेले !

जीवन की आँखों में झाँका
अपना ही प्रतिरूप झलकता,
एक सहज लय में गुन्थित हो
श्वासों का यह ताँता ढलता !


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