कुछ पल
ऐसे भी होते है कुछ पावन पल
जब खो जाती है प्रार्थना
क्योंकि दो नहीं हैं वहाँ
नहीं घटती पूजा... उस निशब्द
में
रह जाता है एक सन्नाटा
और उसमें गूंजती कोई अनाम
सी धुन..
निर्निमेष नयन.. और पिघलता
हुआ सा अस्त्तित्व
काव्य नहीं झरता..
कहने को कुछ शेष नहीं है
रह जाता है मौन और उसमें
बजता कोई निनाद..
दिपदिप करता उजाला बंद
नेत्रों के पीछे
दुनिया होकर भी नहीं है उन
अर्थों में
शेष है एक पुलक, कौंध एक
एक अहसास से ज्यादा कुछ
नहीं..
बस यही घड़ियाँ होती हैं
जीने के लिए..
सुन्दर भावकाव्य
जवाब देंहटाएंसुंदर भावनात्मक विचार लिए सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएंवीरेंद्र जी व रचना जी, स्वागत व आभार..
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसुखद एहसास ...!!
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