डूबे हैं आकंठ
धूसर
काले मेघों से आवृत आकाश
निरंतर
बरस रहा
जल
की हजार धाराओं से
नहा
रही हरी-भरी वसुंधरा
वृक्ष,
घास, लतर, पादप
तृप्त
हुए सभी डूबे हैं आकंठ
नीर
के इस आवरण में ढका है दृष्टिपथ
गूँज
रही है निरंतर गिरती बौछार की प्रतिध्वनि
निज
नीड़ों में सिमटे चुप हैं पंछी
फिर
भी बोल उठती है कभी कोकिल
अथवा
कोई अन्य पांखी परों को झाड़ता हुआ
ले
चुके हैं न जाने कितने कीट जल समाधि
अथवा
तो धरा की गोद में उन्हें पनाह हो मिली
घास
कुछ और हरी हो गयी है
नभ
कुछ और काला
सावन
के पहले से ही मौसम
हुआ है सावन सा मतवाला
असम
की हरियाली का यही तो राज है
ऋतुओं
की रानी यहाँ वर्षा बेताज है
असम की धरती पर सदा से इन्द्रदेव की कृपा रही है.
जवाब देंहटाएंसुंदर वर्णन वर्षा ऋतु का.....
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