एक रहस्य
थम जाती है कलम
बंद हो जाते हैं अधर
ठहर जाती हैं श्वासें भी पल
भर को
लिखते हुए नाम भी... उस
अनाम का
नजर भर कोई देख ले आकाश को
या छू ले घास की नोक पर
अटकी हुई ओस की बूंद
झलक मिल जाती है जिसकी
किसी फूल पर बैठी तितली के
पंखों में
या गोधूलि की बेला में घर
लौटते
पंछियों की कतारों से आते
सामूहिक गान में
कोई करे भी तो क्या करे
इस अखंड आयोजन को देखकर
ठगा सा रह जाता है मन का
हिरण
इधर-उधर कुलांचे मारना भूल
निहारता है अदृश्य से आती स्वर्ण
रश्मियों को
जो रचने लगती हैं नित नये
रूप
किताबों में नहीं मिलता
जवाब
एक रहस्य बना ही रहता है..
एक अनाम जिसकी झलक कितना कुछ कर जाती है ... जो हर जगह है ... पर फिर भी रहस्य ही है ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार दिगम्बर जी !
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सैम मानेकशॉ और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है।कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंअद्भुत रहस्मयी है वो भी, कण-कण में व्याप्त, फिर भी तलाश है उसकी। बहुत सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार संध्या जी !
हटाएंयह क्या? आप जादूगरनी हैं लगता है। आपने यहाँ *भी* एकदम मेरे मन की बात कह दी!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार वाणी जी, जादूगर तो एक वही है..
हटाएंउसके वैभव का एक-एक कण ,चमत्कृत कर देता है -अभिभूत हो उठता है मन !
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने प्रतिभाजी..उसका वैभव अनूठा है..
हटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी..
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