वरदानों को भूल गया मन
रिश्ता जोड़ रहा है कब से
पल-पल दे सौगातें जीवन,
निज पीड़ा में खोया पागल
वरदानों को भूल गया मन !
ठगता आया है खुद को ही
उसी राह पर कदम बढ़ाता,
शूल चुभा था, दर्द सहा था
गीत वही गम के ही गाता !
एक चक्र में डोले जैसे
बिधने की पल-पल तैयारी,
सुख का बादल रहा बरसता
दुःख की चादरिया है डारी !
हँसते कृष्ण, बुद्ध मुस्काए
शंकर मूढ़ मति कहे जाये,
मन मतवाला निज धुन में ही
अपनी धूनी आप रमाये !
बड़ी अजब है ताकत इसकी
बीज प्रेम का, फसल वैर की,
नर्क-स्वर्ग साथ ही गढ़ता
अपनों से भी बात गैर सी !
पल-पल दे सौगातें जीवन,
निज पीड़ा में खोया पागल
वरदानों को भूल गया मन !
ठगता आया है खुद को ही
उसी राह पर कदम बढ़ाता,
शूल चुभा था, दर्द सहा था
गीत वही गम के ही गाता !
एक चक्र में डोले जैसे
बिधने की पल-पल तैयारी,
सुख का बादल रहा बरसता
दुःख की चादरिया है डारी !
हँसते कृष्ण, बुद्ध मुस्काए
शंकर मूढ़ मति कहे जाये,
मन मतवाला निज धुन में ही
अपनी धूनी आप रमाये !
बड़ी अजब है ताकत इसकी
बीज प्रेम का, फसल वैर की,
नर्क-स्वर्ग साथ ही गढ़ता
अपनों से भी बात गैर सी !
कृष्ण हँसे, बुद्ध मुस्काए
जवाब देंहटाएंशंकर मूढ़ मति कह गाये,
मन मतवाला निज धुन में ही
अपनी धूनी आप रमाये !
...वाह! काशी घूमने का लाभ मिला आपको. बधाई.
स्वागत व आभार देवेन्द्र जी, काशी तो फिर काशी है..
हटाएंबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
जवाब देंहटाएंवाह , खूबसूरत अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार सतीश जी !
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