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शुक्रवार, अगस्त 7

हर दिल की यही कहानी है

 हर दिल की यही कहानी है 


कुछ पाना है जग में आकर 

क्या पाना है यह ज्ञात नहीं, 

कुछ भरना है खाली मन में 

क्या भरना है आभास नहीं !

 

जो नाम कमाया व्यर्थ गया 

अब भी अपूर्णता खलती है, 

जो काम सधे पर्याप्त नहीं 

भीतर इच्छाएँ पलती हैं !

 

कर-कर के भी शमशान मिला

ना कर पाए जो पीड़ित है, 

माया मिली न ही राम मिला 

हर दिल की यही कहानी है !

 

था सार्स अभी कोरोना है 

सोयी मानवता जाग उठे, 

निज सुख खातिर दुःख न बांटें 

हर प्राण बचे जो, पाठ पढ़े !

 

क्यों भीतर झाँक नहीं देखा  

वह पूर्ण जहाँ का वासी है, 

वह दूजा न ही पराया है 

निज भाव स्रोत अविनासी है !


बुधवार, अगस्त 5

राम

राम 


त्रेता युग में जन्मे थे 
मर्यादापुरुषोत्तम राम,  
किन्तु आज भी अति पावन 
परम उनका सुंदर नाम !

अनंत को सांत बनाया 
अवतरित  होकर विष्णु ने, 
ना रहे राम पर सीमित
भारत की सीमाओं में !

राम नाम मधुर जाप ने 
सारे जग को गुंजाया, 
हरि अनंत  कथा अनंता 
हर युग ने गायी  गाथा !

जन्मस्थल पर हो मन्दिर 
स्वप्न आज यह पूर्ण हुआ,  
राम राज्य लौटा लाएं   
वर्तमान बाट देखता !

हो स्थापना  मूल्यों की 
 राजाराम चले  जिन पर,
दुनिया को मार्ग दिखाया  
आदर्श पुत्र, भाई बन  !

सीता का नाम सदा ही  
राम से आगे लगाया,  
सहे अनेक अपवाद भी 

बुधवार, अप्रैल 29

जिस दिन लिखने को कुछ शेष न रहे

जिस दिन लिखने को कुछ शेष न रहे 

जिस दिन लिखने को कुछ शेष न रहे 
कहने को कोई शब्द न मिले 
नत मस्तक हो जाना ही होगा 
उस अनाम के आगे 
जो परे है वाणी के 
मौन में वह स्वयं का पता दे रहा है 
हमसे हमारा ‘अहम’ ले रहा है 
जो निःशब्द में सहज ही मिलता है
शब्दों के अरण्य में खो जाता है 
जैसे खो जाती है सूर्य किरण घने वनों में 
जहां वृक्षों की शाखाएँ सटी हैं इस तरह 
कि सदियों से नहीं पहुँची सूर्य की कोई किरण 
नहीं छुआ वहां की माटी को अपने परस से 
जहाँ काई और नमी में डेरा बना लिया है 
कीट-पतंगों ने 
मन में शब्दों का जमघट ‘उसे’ आने नहीं देता 
जो सदा ही उजास बनकर आसपास है 
इस सन्नाटे में उसी से भरना होगा मन का कलश 
और छलक-छलक कर वही रिसेगा 
भर जायेगा कण-कण में तन के 
ऊर्जा की एक लहर बन कर समो लेगा जब 
यह सत्य तभी स्पष्ट होगा कि 
एक लहर के सिवा क्या हैं हम ....? 

बुधवार, मार्च 25

कुदरत यही सिखाने आयी

कुदरत यही सिखाने आयी 


घर में रहना भूल गया है 
बाहर-बाहर तकता है मन, 
अंतर्मुख हो रहे भी कैसे ?
नहीं नाम का सीखा सुमिरन !
  
घर में रहने को नहीं उन्मुख 
शक्ति का जहाँ स्रोत छुपा है,
आराधन कर उस चिन्मय का 
जिसमें तन यह मृण्मय बसा है !

कुदरत यही सिखाने आयी 
कुछ पल रुक कर विश्राम करो,
दिन भर दौड़े-भागे फिरते 
अब दुनिया से उपराम रहो !

हवा शुद्ध होगी परिसर की 
धुँआ छोड़ते वाहन ठहरे,
पंछी अब निर्द्वन्द्व उड़ेंगे 
आवाजों के लगे न पहरे !

धाराएँ भी निर्मल होंगी 
दूषित पानी नहीं बहेगा,
श्रमिकों को विश्राम मिलेगा 
उत्पादन यदि अल्प घटेगा !



मंगलवार, जनवरी 14

है सारा विस्तार एक से



है सारा विस्तार एक से

सूरज बनकर दमक रहा है बना चन्द्रिका चमक रहा है, झर झर झरती जल धार बना बन सुवास मृदु गमक रहा है ! हरियाली बन बिखराता सुख भाव रूप में मौन व गरिमा कहाँ अलग धरती अम्बर से है सारा विस्तार एक से ! जल का स्वाद, अन्नका पोषण वह ही लपट आग की नीली, उससे ही जग का आकर्षण वही ज्वाला बनी है पीली ! वह ही भाव, विचार, ज्ञान है वह ही लघु, सबसे प्रधान है, उससे कोई कहाँ विलग है जिससे है वह कहाँ अलग है ! जननी है वह सब जीवों की उससे रूप सभी को मिलता, वही पराशक्ति भी अजर वह नाम जहाँ से पैदा होता ! खुद को खुद की जगे कामना ऐसी माया वह ही रचती, जग का पहिया रहे डोलता ऐसा कुछ आयोजन करती ! थामे हुए नजर है कोई आसपास ही सदा डोलती, ग्रह, नक्षत्र सभी की शोभा एक उसी का राज खोलती !



सोमवार, अप्रैल 3

एक रहस्य

एक रहस्य

थम जाती है कलम
बंद हो जाते हैं अधर
ठहर जाती हैं श्वासें भी पल भर को
लिखते हुए नाम भी... उस अनाम का
नजर भर कोई देख ले आकाश को
या छू ले घास की नोक पर
अटकी हुई ओस की बूंद
झलक मिल जाती है जिसकी
किसी फूल पर बैठी तितली के पंखों में
या गोधूलि की बेला में घर लौटते
पंछियों की कतारों से आते सामूहिक गान में
कोई करे भी तो क्या करे
इस अखंड आयोजन को देखकर
ठगा सा रह जाता है मन का हिरण
इधर-उधर कुलांचे मारना भूल
निहारता है अदृश्य से आती स्वर्ण रश्मियों को
जो रचने लगती हैं नित नये रूप
किताबों में नहीं मिलता जवाब
एक रहस्य बना ही रहता है..

शुक्रवार, अक्टूबर 18

उसका नाम

उसका नाम


जब कोरा हो मन का पन्ना
तभी लिख लो प्रियतम का नाम उस पर
नहीं तो जमाना लिख देगा
इधर-उधर की इबारतें
महत्वाकांक्षा की दौड़ ले जायेगी खुद से दूर
 फिर पुकार भी उसकी
 कानों तक नहीं आयेगी
इक झूठ को जीते चले जाने से
 नहीं हो जाता वह सच
 नकली पहचान बनाने की जिद में
असली पहचान भी खो जाएगी
जब पढ़ा जा सकता हो साफ-साफ
तभी उकेर दो उसका नाम
 मन के कोरे कागज पर.. 

शनिवार, सितंबर 21

किसने कहा होगा

किसने कहा होगा ?


पुकारो ! एक बार फिर
 मेरा आधा-अधूरा नाम
उन तमाम हसरतों के साथ
पुकारो कि मेरा वजूद सही हो मन को
सोच के तानो-बनों में अटका
फिर खो गया है

संवारो
संवारो मेरे बिखरे पलों को
उलझी लटों की तरह
 संवारो कि अपनी सूरत देख तो लूँ
 जो टूटे दर्पण में मन के
टुकड़े टुकड़े हो गयी है