सोमवार, अप्रैल 17

वरदानों को भूल गया मन



वरदानों को भूल गया मन

रिश्ता जोड़ रहा है कब से
 पल-पल दे सौगातें  जीवन,
निज पीड़ा में खोया पागल
वरदानों को भूल गया मन !

ठगता आया है खुद को ही
उसी राह पर कदम बढ़ाता,
शूल चुभा था, दर्द सहा था
गीत वही गम के ही गाता !

एक चक्र में डोले जैसे
बिधने की पल-पल तैयारी,
सुख का बादल रहा बरसता
दुःख की चादरिया है डारी !

 हँसते कृष्ण, बुद्ध मुस्काए
शंकर मूढ़ मति कहे जाये,
मन मतवाला निज धुन में ही
अपनी धूनी आप रमाये !

बड़ी अजब है ताकत इसकी
बीज प्रेम का, फसल वैर की,
नर्क-स्वर्ग साथ ही गढ़ता
 अपनों से भी बात गैर सी !





5 टिप्‍पणियां:

  1. कृष्ण हँसे, बुद्ध मुस्काए
    शंकर मूढ़ मति कह गाये,
    मन मतवाला निज धुन में ही
    अपनी धूनी आप रमाये !
    ...वाह! काशी घूमने का लाभ मिला आपको. बधाई.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. स्वागत व आभार देवेन्द्र जी, काशी तो फिर काशी है..

      हटाएं
  2. बहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह , खूबसूरत अभिव्यक्ति !

    जवाब देंहटाएं
  4. स्वागत व आभार सतीश जी !

    जवाब देंहटाएं