उड़ न पाते हम गगन  में
गुनगुनी सी आग भीतर 
कुनकुन सा मन का पानी, 
एक आशा ऊंघती सी 
रेंगती सी जिन्दगानी !
फिर भला क्यों कर मिलेगा 
तोहफा यह जिन्दगी का, 
इक कशिश ही, तपन गहरी 
पता देगी मंजिलों का !
जो जरा भी कीमती है 
मांगता है दृढ़ इरादे, 
एक ज्वाला हो अकंपित
 पूर्ण होते अटल वादे !
आज थम कर जरा सोचें 
 गर न हों अवरोध पथ में, 
बिन चुनौती, बिना प्रेरक
 उड़ न पाते हम गगन  में !

 
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी !
हटाएंआज थम कर जरा सोचें
जवाब देंहटाएंगर न हों अवरोध पथ में,
बिन चुनौती, बिना प्रेरक
उड़ न पाते हम गगन में !
.....बहुत सुन्दर प्रेरक रचना
स्वागत व आभार कविता जी !
हटाएंबेहद खूबसूरत रचना अनीता जी ,
जवाब देंहटाएंबिन चुनौती, बिना प्रेरक
उड़ न पाते हम गगन में... वाह
स्वागत व आभार अलकनंदा जी !
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