पल-पल है चेतना नई सी
ग्रह - नक्षत्र, धरा,रवि, चाँद
पादप, पशु, नदिया, चट्टान,
पवन डोलती तूफ़ां उठते
सृष्टि पूर्ण मानव अनजान !
बंधी एक नियम, ऋत, क्रम में
नित नूतन यह पुनर्नवा सी,
अंतर घिरा अतीत धूम्र से
पल-पल है चेतना नई सी !
सुख की चाह रहे भरमाती
पीड़ा के वन में ले जाए,
जितनी दौड़ लगे कम पड़ती
भोला मन यह समझ न पाए !
जाने कब यह क्रम छूटेगा
मन पर छाया भ्रम छूटेगा,
ब्रह्मांड से एक हुआ फिर
निज महिमा का बोध जगेगा !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 03 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 3.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
जाने कब यह क्रम छूटेगा
जवाब देंहटाएंमन पर छाया भ्रम छूटेगा,
ब्रह्मांड से एक हुआ फिर
निज महिमा का बोध जगेगा !
...सुबह-सुबह एक अच्छी रचना पढने को मिली। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया अनीता जी।
स्वागत व आभार !
हटाएंवाह!सुंदर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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जवाब देंहटाएंसुख की चाह रहे भरमाती
पीड़ा के वन में ले जाए,
जितनी दौड़ लगे कम पड़ती
भोला मन यह समझ न पाए
कटु सत्य !
स्वागत व आभार मीना जी !
हटाएंस्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंसुंदर भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंबंधी एक नियम, ऋत, क्रम में
जवाब देंहटाएंनित नूतन यह पुनर्नवा सी,
अंतर घिरा अतीत धूम्र से
पल-पल है चेतना नई सी !बहुत सुन्दर रचना।
स्वागत व आभार !
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंयही आस तो जीवन की आकांक्षा है जिसमें बोध फलित हो ।
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