शुक्रवार, अप्रैल 20

अनगाया गीत एक





अनगाया गीत एक 


हरेक के भीतर एक छुपी है अनकही कहानी
और छुपा है एक अनगाया गीत भी
एक निर्दोष, शीतल फुहार सी हँसी भी
कैद किसी गहरे गह्वर में
बाहर आना जो चाहती
आसमान को ढक ले
एक ऐसा विश्वास भी छुपा है
और... प्रेम का तो एक समुन्दर है तरंगित
किन्तु हरेक व्यस्त है कुछ न कुछ करने में
अथवा तो कुछ न कुछ बटोरने में..
कहानियाँ और गीत सबके हिस्से में नहीं आते
हँसना भी भला कितनों के लिए जरूरी है
प्रेम और विश्वास की भली कही
प्रेम पर भी किसी का विश्वास नहीं रहा अब तो
तो कौन खोजेगा उसे
जो भीतर छिपा है एक खजाने सा अनमोल
पर जिसका नहीं है कइयों की नजरों में कोई मोल !


3 टिप्‍पणियां:

  1. स्वयं ही खोजेगा इंसान जाए ...
    इंसान से आगे भी तो कुछ नहि है ... गहरा भाव लिए सुंदर रचना ...

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  2. स्वागत व आभार दिगम्बर जी !

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