बहना भूल गया यमुना जल
माधव, मुकुंद, मोहन, गिरधर
नाम-नाम में छुपे
प्रीत स्वर,
प्रेम डोर में
बाँध, विरह की
परिभाषा गढ़ डाली
सुंदर !
युग बीते गूँजे
वंशी धुन
ठहर गया है जैसे
वह पल,
वन-उपवन भी चित्र
लिखित से
बहना भूल गया
यमुना जल !
अनुपम, अद्भुत एक अलोना
वैकुंठ से उतर
विहंसता,
अंग-अंग से करुणा
झरती
नयनों से जो जादू
करता !
एक पुकार सुनी
अंतर की
राधा ने निज मन
दे डाला,
खग, मृग, गौएँ, तरु, तृण वन के
झूमे, सँग डोले मतवाला !
पाँव धरे,
पावन भयी भूमि
उस भूखंड झुकाते
माथा,
शत सहस्त्र कंठों
ने गायी
थके नहीं गा गाकर
गाथा !
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