पल-पल सरक रहा संसार
कौन यहाँ किसको ढूंढे है
किसे यहाँ किधर जाना है,
खबर नहीं कण भर भी इसकी
पल भर का नहीं ठिकाना है !
जोड़-तोड़ में लगा है मनवा
बुद्धि उहापोह में खोयी,
हर पल कुछ पाने की हसरत
जाने किस भ्रांति में सोयी !
दिवास्वप्न निरन्तर देखे
मन ही स्वप्न निशा में गढ़ता,
नहीं मिला आधार स्वयं का
लक्ष्यहीन सा रहे विचरता !
एक तिलिस्म महामाया का
घुमा रहा जिसको करतार,
एक व्यूह में भ्रमण चल रहा
पल-पल सरक रहा संसार !
निमंत्रण
जवाब देंहटाएंविशेष : 'सोमवार' १६ अप्रैल २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक में ख्यातिप्राप्त वरिष्ठ प्रतिष्ठित साहित्यकार आदरणीया देवी नागरानी जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आभार !
हटाएंभीतर अंतहकारन से यदि स्वयं का मार्ग निश्चित कर सकें तो ईश्वर का मार्ग स्वतः ही मिल जाएगा ...
जवाब देंहटाएंपर इंसान कहाँ कर पाता है ... सुंदर रचना
नियमित साधना यदि जीवन में हो तो यह भी सम्भव है..स्वागत व आभार दिगम्बर जी !
हटाएंबहुत बहुत आभार ध्रुव जी !
जवाब देंहटाएंअति सुंदर । अपने को पा लेने भर से ही सब मिल जाता है ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अमृता जी !
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