जीवन पग-पग पर मिलता है
नजर उठाकर जरा निहारें
इंच भर ही राह संवारें,
आँचल में सुवास भर देता
धीमे से बस उसे पुकारें !
किसी पुहुप में आ खिलता है
जीवन पग-पग पर मिलता है !
शब्दों को नव अर्थ मिलेंगे
चट्टानों के द्वार खुलेंगे,
अनजाने रस्तों से आकर
निर्मल निर्झर फूट पड़ेंगे !
नूतन पल्लव में हिलता है
जीवन पग-पग पर मिलता है !
मुस्काने गह्वर में दबी थीं
स्मृतियों की परतें ओढ़ी थीं,
परत दर परत खिसकती जाती
व्यर्थ ही सीमाएं गढ़ ली थीं !
एक सूत्र घट-घट बसता है
जीवन पग-पग पर मिलता है !
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी !
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