सन्नाटे को गुनना होगा
शब्दों को तो बहुत पढ़ लिया
सन्नाटे को गुनना होगा,
शोर बहुत है इस दुनिया में
नीरवता को चुनना होगा !
महानगर की अपनी ध्वनियाँ
गाँवों में भी शोर बढ़ रहा,
दिनभर वाहन आते-जाते
देर रात संगीत बज रहा !
कानों में मोबाईल लगा
कोकिल के स्वर सुनेगा कौन ?
कुक्कुट की ना बाँग सुन रहे
गऊओं का रंभाना मौन !
अपनों को भी नहीं सुन रहे
मन में भीषण शोर मचा है,
खुद की आवाजें भी दुबकीं
जग को भीतर बसा लिया है !
जाने किससे बात हो रही
दूजा कोई नहीं वहाँ है,
उस तक पहुँच नहीं हो पाती
निर्जन में ही जो रमता है !
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 20 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार यशोदा जी !
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (21-01-2020) को "आहत है परिवेश" (चर्चा अंक - 3587) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार !
हटाएंउस तक पहुँच नहीं हो पाती
जवाब देंहटाएंनिर्जन में ही जो रमता है !
बहुत सुंदर पंक्तियाँ, नमन
स्वागत व आभार !
हटाएंबेहद सुंदर अभिव्यक्ति अनीता जी ,सादर नमन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार कामिनी जी !
हटाएंमार्मिक !
जवाब देंहटाएंनैसर्गिक ध्वनि का स्थान कृत्रिम आवाज़ों ने ले लिया है । शोर तो बहुत है पर आवाज़ किसी तक पहुँचती नहीं ।
स्वागत व आभार !
हटाएंउस तक पहुँच नहीं हो पाती
जवाब देंहटाएंनिर्जन में ही जो रमता है !
बहुत सुंदर पंक्तियाँ...अनीता जी
स्वागत व आभार संजय जी !
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