सोमवार, जनवरी 20

सन्नाटे को गुनना होगा


सन्नाटे को गुनना होगा



शब्दों को तो बहुत पढ़ लिया सन्नाटे को गुनना होगा, शोर बहुत है इस दुनिया में नीरवता को चुनना होगा ! महानगर की अपनी ध्वनियाँ गाँवों में भी शोर बढ़ रहा, दिनभर वाहन आते-जाते देर रात संगीत बज रहा ! कानों में मोबाईल लगा कोकिल के स्वर सुनेगा कौन ? कुक्कुट की ना बाँग सुन रहे गऊओं का रंभाना मौन ! अपनों को भी नहीं सुन रहे मन में भीषण शोर मचा है, खुद की आवाजें भी दुबकीं जग को भीतर बसा लिया है ! जाने किससे बात हो रही दूजा कोई नहीं वहाँ है, उस तक पहुँच नहीं हो पाती निर्जन में ही जो रमता है !

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 20 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (21-01-2020) को   "आहत है परिवेश"   (चर्चा अंक - 3587)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  3. उस तक पहुँच नहीं हो पाती
    निर्जन में ही जो रमता है !
    बहुत सुंदर पंक्तियाँ, नमन

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  4. बेहद सुंदर अभिव्यक्ति अनीता जी ,सादर नमन

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  5. मार्मिक !
    नैसर्गिक ध्वनि का स्थान कृत्रिम आवाज़ों ने ले लिया है । शोर तो बहुत है पर आवाज़ किसी तक पहुँचती नहीं ।

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  6. उस तक पहुँच नहीं हो पाती
    निर्जन में ही जो रमता है !
    बहुत सुंदर पंक्तियाँ...अनीता जी

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