रविवार, मई 2

मन निर्मल इक दर्पण हो

मन निर्मल इक दर्पण हो


लंबी गहरी श्वास भरें 

वायरस का विनाश करें, 

प्राणायाम, योग अपना 

अंतर में विश्वास धरें !


उष्ण नीर का सेवन हो 

उच्च सदा ही चिंतन हो, 

परम सत्य तक पहुँच सके  

मन निर्मल इक दर्पण हो !


खिड़की घर की रहे खुली

अधरों पर स्मित हटे नहीं, 

विषाणु से कहीं बड़ा है

साहस भीतर डटें वहीं !


नियमित हो जगना-सोना

स्वच्छ रहे घर, हर कोना, 

स्वादिष्ट, सुपाच्य आहार    

मुक्त हवा आना-जाना !


नयनों में पले विश्वास 

मन को भी न करें उदास, 

पवन, धूप, आकाश, नीर  

परम शक्ति का ही निवास !


मुक्ति का अहसास मन में 

चाहे हो पीड़ा तन में,

याद रहे पहले कितने  

फूल खिले इस जीवन में !

 

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