अंतर घट जो रिक्त करे
मौन से इक पर्व उपजा है
नई धुनों का सृजन हो रहा,
मन में प्रीत पुष्प जन्मा है
सन्नाटे से गीत उठ रहा !
उस असीम से नेह लगा तो
सहज प्रेम जग हेतु जगा है,
अंतहीन उसका है आँगन
भीतर का आकाश सजा है !
बिना ताल इक कमल खिल रहा
हंसा भी लहर-लहर खेले,
बिन सूरज उजियाला होता
अंतरमन का जब दीप जले !
शून्य गगन में नित्य डोलता
मधुमय अनहद राग सुन रहा,
अमिय बरसता भरता जाता
अंतर घट जो रिक्त कर रहा !
घर में ही जो ढूँढा उसको
वहीं कहीं छुप कर बैठा था
नजर उठा के देखा भर था
हुआ मस्त जो मन रूठा था !
आदि, अंत से रहित हो रहा
आठ पहर है सुधा सरसती,
दूर रहे जब दौड़ जगत की
निकट तभी वह धार बरसती !
अनिता निहालानी
१ दिसम्बर २०१०
आदि, अंत से रहित हो रहा
जवाब देंहटाएंआठ पहर है सुधा सरसती
सुन्दर शब्द ।
अनीता जी,
जवाब देंहटाएंकई बार आपके ब्लॉग पर शब्द ही नहीं मिलते कुछ कहने को....आज भी कुछ ऐसा ही है......क्या कहूँ....
"घर में ही जो ढूंढा उसको
वहीं कहीं छुप कर बैठा था
नजर उठा के देखा भर था
हुआ मस्त जो मन रुठा था !"
अनीता जी कुछ ध्यान की विधि हमें भी बताइए....जो साधक के लिए उपयुक्त हो...
बहोत ही अच्छा लिखा है आपने..........
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (2/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
बहुत खूबसूरत रचना ...सकारात्मक उर्जा मिलती है आपकी रचनाएँ पढ़ कर ..
जवाब देंहटाएंघर में ही जो ढूंढा उसको
जवाब देंहटाएंवहीं कहीं छुप कर बैठा था
नजर उठा के देखा भर था
हुआ मस्त जो मन रुठा था ...
कस्तूरी कुंडली बसे मृग ढूंढें जग माहि ...
रचनात्मक प्रस्तुति ..!
इमरान जी, ध्यान से साधना मन को है और साधेगा कौन ? इस कौन का पता लगाना जरूरी है, अपने से पूछते रहें कि कौन हो तुम, जो इस देह में रहते हो ?
जवाब देंहटाएंसंगीता जी ,सारा खेल ही ऊर्जा का है , ऊर्जा यदि कम हो तो मन बुझा सा रहता है साधना से प्राण ऊर्जा बढ़ जाये तो मन खिल जाता है
यह केवल रचना मात्र नहीं है ...वरन अकाट्य सत्य है . आप हमें इस भागम-भाग की जिन्दगी से खींच कर सत्य से साक्षात्कार कराती हैं इसके लिए आपको हार्दिक धन्यवाद ...
जवाब देंहटाएंदिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंसादर
अनीता जी,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.....आपने बहुत गहरी बात कही है....मैंने पुछा था कोई विधि....जैसे एक श्वास विधि....जो अति प्राचीन है ह्स्वास छोड़ने और लेने के के बिच जो एक पल का अन्तराल है उस पर ध्यान लगाना.....क्या आप और कोई विधि बता सकती है......आप चाहें तो मुझे ईमेल कर सकती हैं.....
आदि, अंत से रहित हो रहा
जवाब देंहटाएंआठ पहर है सुधा सरसती,
दूर रहे जब दौड़ जगत की
निकट तभी कृपा बरसती !
मन को प्रफुल्लित करती बहुत सुन्दर प्रस्तुति..आभार
शून्य गगन में मन डोलता
जवाब देंहटाएंमधुमय अनहद राग सुने,
अमिय बरसता भरता जाता
अंतर घट जो रिक्त करे !
मनमोहक उजास है इन शब्दों में...