वर्षा थमी
पंछी छोड़ नीड़ निज चहकें
मेह थमा निकले सब घर से,
सूर्य छिपा जो देख घटाएँ
चमक रहा पुनः चमचम नभ में !
जगह जगह छोटे चहबच्चे
फुद्कें पंछी छपकें बच्चे,
गहराई हरीतिमा भू की
शीतलतर पवन के झोंके !
पल भर पहले जो था काला
नभ कैसा नीला हो आया,
धुला-धुला सब स्वच्छ नहा कर
कुदरत का मेला हो आया !
इंद्रधनुष सतरंगी नभ में
सुंदरता अपूर्व बिखराता,
दो तत्वों का मेल गगन में
स्वप्निल इक रचना रच जाता !
जहाँ-जहाँ अटकीं जल बूँदें
रवि कर से टकराकर चमकें,
जैसे नभ में टिमटिम तारे
पत्तों पर जलकण यूँ दमकें !
कहीं-कहीं कुछ धूसर बादल
छितरे नभ में होकर निर्बल,
आयी थी जो सेना डट के
रिक्त हो गयी बरस बरस के !
पूर्ण तामझाम संग आयी
काले मेघा गज विशाल हो,
हो गर्जन तर्जन रणभेरी
चमके विद्युत तिलक भाल ज्यों !
बहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएंसुन्दर काव्य!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंइंद्रधनुष सतरंगी नभ में
जवाब देंहटाएंसुंदरता अपूर्व बिखराता,
दो तत्वों का मेल गगन में
स्वप्निल इक रचना रच जाता !
सुंदर रचना अनीता जी | शब्दों में प्रकृति के विहंगम संसार को जीवंत करती हुई |
जहाँ-जहाँ अटकीं जल बूँदें
जवाब देंहटाएंरवि कर से टकराकर चमकें,
जैसे नभ में टिमटिम तारे
पत्तों पर जलकण यूँ दमकें !बहुत सुंदर मनभावन रचना,
बहुत ही रोचक व मनोहारी लेखन हेतु हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आदरणीय अनीता जी।
जवाब देंहटाएंआप सभी सुधीजनों का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंअहा! हृदय हर्षोल्लास से भर दिया ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंपढ़कर यूं लगा ज्यूं सुहाने मौसम में घर से बाहर खुले में निकल आया हूँ । प्रकृति का ऐसा सुंदर चित्रण विरले ही देखने को मिलता है ।
जवाब देंहटाएं